Unit 3: Role of community in education of children with disabilities.दिव्यांग बच्चों की शिक्षा में समुदाय

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दिव्यांग बच्चों की शिक्षा में समुदाय की भूमिका



विषय-सूची

अध्याय 3: दिव्यांग बच्चों की शिक्षा में समुदाय की भूमिका

परिचय:

हमारे आस-पास के समाज का हर व्यक्ति, हर परिवार और हर संस्था मिलकर हमारा समुदाय (Community) बनाती है। दिव्यांग बच्चों की शिक्षा और उनके सर्वांगीण विकास में केवल स्कूल या शिक्षक ही नहीं, बल्कि इस पूरे समुदाय की अहम भूमिका होती है। यह अध्याय समझाएगा कि कैसे समुदाय दिव्यांग बच्चों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।


3.1 दिव्यांगता के बारे में जागरूकता फैलाने में समुदाय की भूमिका

  •   अवधारणा (Concept): बहुत से लोग दिव्यांगता को गलत नजरिए से देखते हैं। कुछ इसे भगवान का श्राप मानते हैं तो कुछ दया या डर की भावना रखते हैं। समुदाय का पहला काम है इस भ्रम को तोड़ना और सही, वैज्ञानिक जानकारी देना।
  •   सरल व्याख्या (Simple Explanation):
    •   शुरुआती पहचान (Early Identification): समुदाय के लोग - जैसे पड़ोसी, रिश्तेदार, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, स्थानीय डॉक्टर - अक्सर सबसे पहले यह नोटिस करते हैं कि कोई बच्चा देखने, सुनने, बोलने, चलने या सीखने में दूसरे बच्चों से अलग तरह से व्यवहार कर रहा है। उनकी इस सूझबूझ से बच्चे की दिव्यांगता का पता जल्दी चल सकता है।
    •   शुरुआती हस्तक्षेप (Early Intervention): जल्दी पहचान होने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि बच्चे को जल्दी मदद मिल सकती है (जैसे फिजियोथेरेपी, स्पीच थेरेपी, विशेष शिक्षा)। समुदाय के लोग परिवार को ऐसी सेवाओं और विशेषज्ञों के बारे में जानकारी दे सकते हैं और उन्हें प्रोत्साहित कर सकते हैं।
    •   शिक्षा के बारे में जागरूकता: समुदाय यह समझने में मदद कर सकता है कि हर दिव्यांग बच्चे को शिक्षा पाने का अधिकार है। वे यह भी बता सकते हैं कि कैसे सामान्य स्कूलों को समावेशी (Inclusive) बनाया जा सकता है या विशेष स्कूल कहां उपलब्ध हैं।
    •   बाधा-मुक्त वातावरण (Barrier-Free Environment): समुदाय मिलकर ऐसा माहौल बना सकता है जहां दिव्यांग बच्चे आसानी से घूम-फिर सकें और भाग ले सकें। इसका मतलब है:
      • भौतिक बाधाएं हटाना: जैसे रैंप बनवाना, सार्वजनिक शौचालयों को सुलभ बनाना, संकरी गलियों को चौड़ा करना।
      • सामाजिक बाधाएं हटाना: लोगों की सोच बदलना, दिव्यांग बच्चों और उनके परिवारों के साथ भेदभाव न करना, उन्हें सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल करना।

3.2 समावेशी समाज बनाने में एक हितधारक के रूप में समुदाय

  •   अवधारणा (Concept): एक समावेशी समाज (Inclusive Society) वह है जहां हर व्यक्ति, चाहे उसकी क्षमता कुछ भी हो, सम्मान के साथ रह सके, सीख सके और समाज के विकास में योगदान दे सके। समुदाय इस तरह के समाज की नींव है।
  •   सरल व्याख्या (Simple Explanation):
    • समुदाय सिर्फ देखने वाला नहीं है; वह एक सक्रिय भागीदार (Active Stakeholder) है। उसके पास दिव्यांग बच्चों और उनके परिवारों को सहयोग देने की शक्ति और जिम्मेदारी है।
    • जब समुदाय के लोग दिव्यांग बच्चों को स्वीकार करते हैं, उनके साथ खेलते हैं, उन्हें सामान्य गतिविधियों में शामिल करते हैं, तो यह दिव्यांग बच्चे के आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
    • यह दूसरे बच्चों और बड़ों को भी सिखाता है कि अंतर होना सामान्य है और सबका सम्मान करना चाहिए।
    • ग्राम पंचायतें, मोहल्ला समितियाँ, धार्मिक संस्थाएं, युवा क्लब - सभी मिलकर समावेशी माहौल बनाने में योगदान दे सकते हैं। जैसे: सामुदायिक केंद्रों को सुलभ बनाना, त्योहारों में सबको शामिल करना।

3.3 शिक्षा और पुनर्वास के लिए स्थानीय समुदाय के समर्थन और संसाधनों को जुटाना

  •   अवधारणा (Concept): सरकारी संसाधन अक्सर सीमित होते हैं। स्थानीय समुदाय के पास मानवीय संसाधन (लोगों का समय, कौशल), भौतिक संसाधन (जगह, सामान) और वित्तीय संसाधन (छोटे दान) होते हैं जिन्हें दिव्यांग बच्चों की मदद के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
  •   सरल व्याख्या (Simple Explanation):
    •   स्वैच्छिक कार्य (Volunteering): स्थानीय युवा, कॉलेज के छात्र या सेवानिवृत्त लोग दिव्यांग बच्चों को पढ़ाने, उनके साथ खेलने या उनकी देखभाल में मदद करने के लिए कुछ घंटे दे सकते हैं।
    •   संसाधन साझा करना (Resource Sharing): मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, सामुदायिक भवन जैसी जगहों का इस्तेमाल शिक्षण केंद्र, थेरेपी सत्र या जागरूकता कार्यक्रमों के लिए किया जा सकता है।
    •   स्थानीय दान (Local Donations): छोटे स्तर पर धन जुटाकर व्हीलचेयर, ब्रेल किताबें, सुनने की मशीन (Hearing Aids) या अन्य सहायक उपकरण खरीदे जा सकते हैं।
    •   कौशल साझा करना (Skill Sharing): अगर समुदाय में कोई कारपेंटर है, तो वह सुलभ फर्नीचर बना सकता है। कोई डॉक्टर या नर्स स्वास्थ्य जांच कैंप लगा सकता है।

3.4 आंगनवाड़ियों और अन्य सरकारी एजेंसियों के साथ सहयोग को सुगम बनाना

  •   अवधारणा (Concept): आंगनवाड़ी केंद्र (Aganwadis) बच्चों के विकास की नींव रखते हैं। अन्य सरकारी विभाग (जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय) भी सेवाएं देते हैं। समुदाय इन एजेंसियों और दिव्यांग बच्चों के परिवारों के बीच एक जरूरी कड़ी (Bridge) का काम कर सकता है।
  •   सरल व्याख्या (Simple Explanation):
    •   आंगनवाड़ियों के साथ साझेदारी: समुदाय के सदस्य (माता समितियाँ, स्थानीय नेता) आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को दिव्यांगता के शुरुआती लक्षण पहचानने में मदद कर सकते हैं। वे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि दिव्यांग बच्चे आंगनवाड़ी में नामांकित हों और उनकी जरूरतों का ध्यान रखा जाए। समुदाय आंगनवाड़ी भवन को सुलभ बनाने के लिए भी दबाव बना सकता है।
    •   अन्य एजेंसियों से जोड़ना: समुदाय परिवारों को सरकारी योजनाओं (जैसे दिव्यांगता पेंशन, छात्रवृत्ति, मुफ्त उपकरण, भ्रमण भत्ता) के बारे में बता सकता है और उन्हें आवेदन करने में मदद कर सकता है।
    •   समन्वय (Coordination): समुदाय के नेता या स्वयंसेवी संगठन (NGOs) यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि स्वास्थ्य विभाग की टीम नियमित जांच के लिए आए, शिक्षा विभाग समावेशी शिक्षा पर काम करे, और सामाजिक न्याय विभाग के अधिकारी लाभ पहुंचाएं।

3.5 समुदायों में दिव्यांग बच्चों और उनके परिवारों के अधिकारों की सुरक्षा करना

  •   अवधारणा (Concept): दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम (RPWD Act 2016) और अंतर्राष्ट्रीय समझौते (UNCRPD) दिव्यांग बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य, समानता और सम्मान का अधिकार देते हैं। समुदाय इन अधिकारों के संरक्षक (Guardian) की भूमिका निभा सकता है।
  •   सरल व्याख्या (Simple Explanation):
    •   भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाना: अगर किसी दिव्यांग बच्चे या उसके परिवार के साथ स्कूल में, अस्पताल में या सार्वजनिक जगह पर भेदभाव होता है, तो समुदाय के लोग उनका साथ दे सकते हैं और उचित अधिकारियों से शिकायत कर सकते हैं।
    •   शोषण और उपेक्षा से बचाव: समुदाय की सतर्क नजर दिव्यांग बच्चों को किसी भी तरह के शोषण (शारीरिक, भावनात्मक, यौन) या उपेक्षा से बचा सकती है। अगर ऐसा कुछ दिखे तो तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए (चाइल्ड हेल्पलाइन - 1098 को कॉल करना)।
    •   अधिकारों के बारे में जागरूक करना: समुदाय यह सुनिश्चित कर सकता है कि दिव्यांग बच्चों के परिवारों को उनके कानूनी अधिकारों (जैसे मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, सार्वजनिक सुविधाओं तक पहुंच) की जानकारी हो।
    •   समान अवसर सुनिश्चित करना: समुदाय यह देख सकता है कि दिव्यांग बच्चों को खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों आदि में भाग लेने के समान मौके मिल रहे हैं या नहीं।

निष्कर्ष:
दिव्यांग बच्चों के लिए एक सही मायने में समावेशी और सशक्त भविष्य बनाने में समुदाय की भूमिका स्कूल और सरकार से किसी भी तरह कम नहीं है। जागरूकता, स्वीकृति, सक्रिय भागीदारी, संसाधन जुटाना और अधिकारों की रक्षा करना - ये सभी कदम मिलकर समुदाय को दिव्यांग बच्चों की शिक्षा और उनके समग्र कल्याण का एक मजबूत स्तंभ बना सकते हैं। जब पूरा समुदाय एकजुट होकर काम करता है, तो दिव्यांगता एक 'अक्षमता' नहीं, बल्कि मानवीय विविधता का एक हिस्सा बन जाती है, जहां हर बच्चे को फलने-फूलने का मौका मिलता है।

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