Unit 1: Introduction to Environment Science (EVS) and Social Science:पर्यावरण विज्ञान (ईवीएस) और सामाजिक विज्ञान का परिचय

xtoriya
0

हिंदी व्याख्या: पर्यावरण अध्ययन (ईवीएस) एवं सामाजिक विज्ञान - अवधारणा, प्रकृति एवं दृष्टिकोण (इकाई 1)



विषय-सूची

यह ब्लॉग पोस्ट पर्यावरण अध्ययन (ईवीएस) और सामाजिक विज्ञान की मूलभूत अवधारणाओं, उनके दायरे और प्रकृति की विस्तृत हिंदी व्याख्या प्रदान करता है। इसमें विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के एक एकीकृत क्षेत्र के रूप में ईवीएस की समझ और बधिर बच्चों को इन विषयों को पढ़ाने के लिए विशेष विचारों पर भी प्रकाश डाला गया है।

इकाई 1: पर्यावरण विज्ञान (ईवीएस) और सामाजिक विज्ञान का परिचय (15 घंटे)

1.2 पर्यावरण विज्ञान (ईवीएस) और सामाजिक विज्ञान - अवधारणा, क्षेत्र और प्रकृति

अवधारणा (Concept):

  • पर्यावरण विज्ञान (ईवीएस): यह एक बहु-विषयक (multidisciplinary) क्षेत्र है जो मानव समेत सभी जीवधारियों और उनके आसपास के भौतिक, रासायनिक, जैविक एवं सामाजिक घटकों के बीच पारस्परिक क्रियाओं का अध्ययन करता है। इसका लक्ष्य पर्यावरणीय समस्याओं को समझना, उनके समाधान खोजना और प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित करना है।
  • सामाजिक विज्ञान (Social Science): यह मानव समाज, उसके विकास, संरचना, संस्थाओं, व्यवहार और पारस्परिक संबंधों का वैज्ञानिक अध्ययन है। इसमें इतिहास, भूगोल, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, नृविज्ञान आदि विषय शामिल हैं।

क्षेत्र (Scope):

  • ईवीएस: प्राकृतिक संसाधन (जल, वायु, मिट्टी, खनिज, वन), पारिस्थितिकी तंत्र, जैव विविधता, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, अपशिष्ट प्रबंधन, पर्यावरणीय नीतियाँ एवं कानून, संरक्षण, सतत विकास, मानव स्वास्थ्य पर पर्यावरण का प्रभाव।
  • सामाजिक विज्ञान: मानव समाज का विकास एवं इतिहास, सांस्कृतिक विविधता, सामाजिक संरचना (जाति, वर्ग, लिंग), राजनीतिक व्यवस्थाएँ, आर्थिक गतिविधियाँ (कृषि, उद्योग, व्यापार), मानव भूगोल (जनसंख्या, बस्तियाँ, संसाधन वितरण), मानव व्यवहार एवं मनोवृत्तियाँ, सामाजिक समस्याएँ, शासन व्यवस्था।

प्रकृति (Nature):

  • ईवीएस: अंतःविषयक (Interdisciplinary) - विज्ञान (जीव विज्ञान, रसायन, भौतिकी), सामाजिक विज्ञान (अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र) और मानविकी (नैतिकता, दर्शन) का समन्वय। व्यावहारिक (Practical) - वास्तविक दुनिया की समस्याओं पर केंद्रित। गतिशील (Dynamic) - नई खोजों और चुनौतियों के साथ निरंतर विकसित होता है। वैश्विक (Global) - पर्यावरणीय मुद्दे सीमाओं से परे होते हैं।
  • सामाजिक विज्ञान: वैज्ञानिक पद्धतियों पर आधारित (Scientific) - अवलोकन, सर्वेक्षण, विश्लेषण द्वारा मानव व्यवहार का अध्ययन। सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक (Theoretical & Practical) - सिद्धांतों के साथ-साथ सामाजिक समस्याओं के समाधान पर भी ध्यान। मानव-केंद्रित (Human-centric) - मानव समाज और उसकी गतिविधियों का अध्ययन। व्याख्यात्मक (Interpretive) - सामाजिक घटनाओं के अर्थ और प्रभावों की व्याख्या करना। सापेक्षिक (Relative) - सामाजिक तथ्य समय, स्थान और संस्कृति के सापेक्ष बदलते हैं।

1.3 विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और पर्यावरण शिक्षा के एकीकृत क्षेत्र के रूप में ईवीएस की समझ

  • ईवीएस विज्ञान और सामाजिक विज्ञान की कृत्रिम दीवारों को तोड़ता है।
  • विज्ञान का योगदान: प्राकृतिक दुनिया के भौतिक, रासायनिक और जैविक पहलुओं (जैसे जल चक्र, प्रकाश संश्लेषण, प्रदूषण के वैज्ञानिक कारण, जैव विविधता) को समझने के लिए वैज्ञानिक सिद्धांतों और पद्धतियों का उपयोग करता है।
  • सामाजिक विज्ञान का योगदान: पर्यावरणीय समस्याओं के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक कारणों और प्रभावों (जैसे संसाधनों पर असमान पहुँच, पर्यावरण नीतियाँ, उपभोग के सांस्कृतिक पैटर्न, आपदाओं का सामाजिक प्रभाव) को समझने में मदद करता है।
  • पर्यावरण शिक्षा का लक्ष्य: ईवीएस का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण शिक्षा (Environmental Education) देना है, जो न केवल ज्ञान प्रदान करती है बल्कि पर्यावरण के प्रति जागरूकता, चिंता, सकारात्मक दृष्टिकोण, कौशल और सक्रिय भागीदारी को विकसित करती है। यह सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु जिम्मेदार नागरिक तैयार करती है।
  • एकीकरण का महत्व: कोई भी पर्यावरणीय मुद्दा (जैसे जल संकट) शुद्ध रूप से वैज्ञानिक (वर्षा, भूजल) या शुद्ध रूप से सामाजिक (जल वितरण, राजनीति) नहीं होता। ईवीएस दोनों के एकीकृत ज्ञान के बिना समस्या की समग्र समझ और प्रभावी समाधान असंभव है।

1.4 विज्ञान के रूप में पर्यावरण विज्ञान (ईवीएस) - जल, वायु, मिट्टी, ऊर्जा स्रोत, पारिस्थितिकी तंत्र, पौधों और जानवरों में अनुक्रिया एवं अनुकूलन

इस पहलू में ईवीएस प्राकृतिक दुनिया के भौतिक और जैविक घटकों और उनकी वैज्ञानिक प्रक्रियाओं पर केंद्रित होता है:

  • जल (Water): जल चक्र, जल के भौतिक एवं रासायनिक गुण, जल स्रोत (नदियाँ, झीलें, भूजल), जल प्रदूषण के कारण एवं प्रभाव, जल संरक्षण।
  • वायु (Air): वायुमंडल की संरचना, वायु प्रदूषण (कारण, प्रदूषक, प्रभाव - वैश्विक तापन, अम्ल वर्षा), वायु गुणवत्ता प्रबंधन।
  • मिट्टी (Soil): मिट्टी निर्माण, संरचना, प्रकार, उर्वरता, मिट्टी अपरदन एवं क्षरण के कारण, मृदा संरक्षण विधियाँ।
  • ऊर्जा स्रोत (Source of Energy): ऊर्जा के पारंपरिक (कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस) और गैर-पारंपरिक (सौर, पवन, जलविद्युत, बायोमास) स्रोत। उनके लाभ, हानि और सतत उपयोग।
  • पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem): जीव (उत्पादक, उपभोक्ता, अपघटक) और उनके अजैविक पर्यावरण के बीच अंतर्संबंध। खाद्य श्रृंखला, खाद्य जाल, पोषी स्तर। पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार (वन, घास स्थल, मरुस्थल, जलीय)। पारिस्थितिक संतुलन।
  • पौधों और जानवरों में अनुक्रिया एवं अनुकूलन (Response and Adaptation in Plants and Animals): जीव अपने पर्यावरण के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करते हैं (उत्तेजना के प्रति)। विभिन्न आवासों (गर्म, ठंडे, शुष्क, जलीय) में जीवित रहने के लिए पौधों और जानवरों में विकसित विशेष संरचनात्मक, शारीरिक या व्यवहारिक लक्षण (जैसे कैक्टस में काँटे, ध्रुवीय भालू की मोटी चर्बी, पक्षियों का प्रवास)। जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन।

1.5 सामाजिक विज्ञान के रूप में पर्यावरण (ईवीएस) - सामाजिक विज्ञान और सामाजिक अध्ययन में अंतर, मानव जनसंख्या और पर्यावरण, कृषि और उद्योग, पर्यावरणीय क्षरण और चिंताएँ, आपदा प्रबंधन

इस पहलू में ईवीएस इस बात पर केंद्रित होता है कि कैसे मानव गतिविधियाँ और सामाजिक संरचनाएँ पर्यावरण को प्रभावित करती हैं और कैसे पर्यावरणीय परिवर्तन समाज को प्रभावित करते हैं:

  • सामाजिक विज्ञान और सामाजिक अध्ययन में अंतर (Difference between Social Science and Social Studies):
    • सामाजिक विज्ञान (Social Science): यह एक शैक्षणिक अनुशासन है जो मानव समाज के विभिन्न पहलुओं (इतिहास, भूगोल, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र आदि) का वैज्ञानिक और विश्लेषणात्मक अध्ययन करता है। यह विश्वविद्यालय स्तर पर गहन शोध पर केंद्रित होता है।
    • सामाजिक अध्ययन (Social Studies): यह विद्यालय स्तर पर (विशेषकर प्राथमिक और माध्यमिक) पढ़ाया जाने वाला एक समेकित विषय-क्षेत्र है। यह सामाजिक विज्ञान की विभिन्न शाखाओं (मुख्यतः इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र) से प्राप्त ज्ञान और कौशल को समाज और उसके नागरिकों के लिए प्रासंगिक बनाने के लिए एकीकृत करता है। इसका उद्देश्य अच्छे नागरिकों का निर्माण करना है।
  • मानव जनसंख्या और पर्यावरण (Human Population and the Environment): जनसंख्या वृद्धि, वितरण और घनत्व का पर्यावरण पर दबाव (संसाधनों की माँग, भूमि उपयोग परिवर्तन, प्रदूषण में वृद्धि, अपशिष्ट उत्पादन)। जनसांख्यिकीय संक्रमण।
  • कृषि और उद्योग (Agriculture and Industry):
    • कृषि: आधुनिक कृषि पद्धतियों (रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग, जल अतिदोहन) का पर्यावरणीय प्रभाव (मृदा क्षरण, जल प्रदूषण, जैव विविधता हानि)। सतत कृषि के उपाय (जैविक खेती, जैव-विविधता संरक्षण)।
    • उद्योग: औद्योगीकरण से उत्पन्न प्रदूषण (वायु, जल, भूमि, ध्वनि), प्राकृतिक संसाधनों का अति दोहन, ऊर्जा खपत। हरित प्रौद्योगिकी, स्वच्छ उत्पादन प्रक्रियाएँ, अपशिष्ट न्यूनीकरण और पुनर्चक्रण।
  • पर्यावरणीय क्षरण और चिंताएँ (Environment Degradation and Concerns): वनों की कटाई, मरुस्थलीकरण, जलवायु परिवर्तन, ओजोन परत का क्षरण, जैव विविधता का ह्रास, विषाक्त अपशिष्ट, शहरीकरण का दबाव। इन समस्याओं के सामाजिक-आर्थिक मूल कारण (गरीबी, उपभोक्तावाद, असमान विकास)।
  • आपदा प्रबंधन (Disaster Management): प्राकृतिक (बाढ़, सूखा, भूकंप, चक्रवात, सुनामी) और मानव-जनित (औद्योगिक दुर्घटनाएँ, रासायनिक रिसाव) आपदाओं को समझना। आपदा प्रबंधन चक्र: रोकथाम, तैयारी, प्रतिक्रिया, पुनर्वास और पुनर्निर्माण। सामुदायिक भागीदारी, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, सहनशीलता निर्माण।

1.6 बधिर बच्चों को ईवीएस और सामाजिक विज्ञान पढ़ाने का क्षेत्र, प्रकृति और उद्देश्य

क्षेत्र (Scope):

ईवीएस और सामाजिक विज्ञान का पाठ्यक्रम बधिर बच्चों के लिए भी वही होना चाहिए जो सुनने वाले बच्चों के लिए है, क्योंकि ज्ञान और कौशल समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। हालाँकि, इसे पहुँचाने के तरीकों और संचार के साधनों में समायोजन की आवश्यकता है। इसमें शामिल है:

  • स्थानीय पर्यावरण और समुदाय पर जोर।
  • व्यावहारिक, प्रयोगात्मक और अनुभवात्मक शिक्षण गतिविधियाँ।
  • दृश्य-स्थानिक अवधारणाओं (भूगोल, मानचित्र, पारिस्थितिकी तंत्र आरेख) की प्रमुखता।

प्रकृति (Nature):

शिक्षण की प्रकृति होनी चाहिए:

  • दृश्य-केंद्रित (Visual-centric): भारी मात्रा में दृश्य सामग्री का उपयोग - चित्र, चार्ट, रेखाचित्र, मॉडल, वास्तविक वस्तुएँ, वीडियो (कैप्शन/एसएल इंटरप्रिटेशन के साथ), फील्ड विजिट।
  • संकेत भाषा पर निर्भर (Sign Language Dependent): भारतीय संकेत भाषा (ISL) या अन्य प्रासंगिक संकेत भाषा मुख्य संचार माध्यम होनी चाहिए। शब्दावली और अवधारणाओं के लिए स्पष्ट और सुसंगत संकेत विकसित करना महत्वपूर्ण है।
  • बहुसंवेदी (Multisensory): जहाँ संभव हो, स्पर्श, गंध और स्वाद जैसी अन्य इंद्रियों को शामिल करना (जैसे विभिन्न मिट्टी/पत्तियों को छूना, प्रदूषित और स्वच्छ वायु की गंध का अंतर समझना)।
  • अनुभवात्मक और व्यावहारिक (Experiential & Hands-on): प्रयोग करना, मॉडल बनाना, बगीचे में काम करना, स्थानीय क्षेत्र का नक्शा बनाना, भूमिका निर्वाह करना। अमूर्त अवधारणाओं को मूर्त अनुभवों से जोड़ना।
  • सामाजिक संपर्क पर बल (Emphasis on Social Interaction): सहयोगात्मक परियोजनाएँ, समूह चर्चाएँ (संकेत भाषा में) सामाजिक कौशल और समझ विकसित करने में मदद करती हैं।

उद्देश्य (Objectives):

बधिर बच्चों को ईवीएस और सामाजिक विज्ञान पढ़ाने के प्रमुख उद्देश्यों में शामिल हैं:

  • ज्ञान प्रदान करना: पर्यावरण और सामाजिक दुनिया के बारे में मौलिक तथ्यों, अवधारणाओं और सिद्धांतों को सुलभ दृश्य-स्थानिक तरीकों से समझाना।
  • वैज्ञानिक एवं सामाजिक समझ विकसित करना: प्राकृतिक घटनाओं और सामाजिक प्रक्रियाओं के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सामाजिक समझ विकसित करना।
  • पर्यावरणीय जागरूकता एवं संवेदनशीलता: पर्यावरण के प्रति चिंता, जिम्मेदारी की भावना और संरक्षण के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करना।
  • सामाजिक समझ एवं नागरिकता: समाज, उसकी विविधता, संस्कृति, संस्थाओं और कर्तव्यों-अधिकारों को समझकर जिम्मेदार और सक्रिय नागरिक बनने के लिए तैयार करना।
  • आलोचनात्मक चिंतन एवं समस्या समाधान कौशल: पर्यावरणीय और सामाजिक मुद्दों का विश्लेषण करने, उनके कारणों को समझने और संभावित समाधानों पर विचार करने की क्षमता विकसित करना।
  • संचार कौशल को बढ़ावा देना: विषय-विशिष्ट शब्दावली और अवधारणाओं को संकेत भाषा और लिखित/दृश्य माध्यमों के माध्यम से अभिव्यक्त करने की क्षमता को विकसित करना।
  • स्वतंत्रता और आत्मविश्वास का निर्माण: ज्ञान और कौशल प्रदान करके बधिर बच्चों को अपने पर्यावरण और समाज के साथ सकारात्मक रूप से जुड़ने और आत्मविश्वासी व्यक्तियों के रूप में विकसित होने में सक्षम बनाना।
  • समावेशन और सामाजिक एकीकरण: इन विषयों के माध्यम से सुनने वाले समुदाय के साथ साझा ज्ञान और अनुभव प्रदान करके समावेशन को बढ़ावा देना।

सारांश:

यह इकाई ईवीएस और सामाजिक विज्ञान की अंतःविषय प्रकृति को रेखांकित करती है, जो प्राकृतिक दुनिया के वैज्ञानिक पहलुओं और मानव समाज के सामाजिक आयामों के बीच की कड़ी को दर्शाती है। बधिर शिक्षार्थियों के लिए शिक्षण को दृश्य-केंद्रित, संकेत भाषा आधारित, व्यावहारिक और समावेशी बनाना सफलता की कुंजी है, ताकि वे भी पर्यावरण और समाज के जिम्मेदार और जागरूक सदस्य बन सकें।

Tags

Post a Comment

0Comments

Post a Comment (0)