विज्ञान एवं गणित में मूल्यांकन: एक व्यापक मार्गदर्शिका
मूल्यांकन के विभिन्न आयामों, तकनीकों और समावेशी दृष्टिकोण पर एक गहन विश्लेषण।
5.1 मूल्यांकन की अवधारणा, उद्देश्य एवं महत्व
अवधारणा (Concept):
- मूल्यांकन शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। यह केवल छात्रों को अंक या ग्रेड देने तक सीमित नहीं है।
- यह एक व्यवस्थित प्रक्रिया है जिसके द्वारा छात्रों के ज्ञान (Knowledge), समझ (Understanding), कौशल (Skills), योग्यताओं (Abilities), अभिवृत्तियों (Attitudes) और उपलब्धियों (Achievements) के बारे में सूचना एकत्रित की जाती है, उसका विश्लेषण किया जाता है और उसके आधार पर निर्णय लिए जाते हैं।
- विज्ञान और गणित में मूल्यांकन का तात्पर्य है कि छात्र:
- वैज्ञानिक अवधारणाओं/गणितीय सिद्धांतों को कितना समझते हैं?
- वैज्ञानिक प्रक्रिया कौशल (प्रेक्षण, वर्गीकरण, अनुमान, प्रयोग, डेटा विश्लेषण)/गणितीय कौशल (समस्या समाधान, तर्क, गणना) का कितना प्रयोग कर पाते हैं?
- वैज्ञानिक सोच/तार्किक चिंतन कितना विकसित हुआ है?
- प्रायोगिक कार्य/गणितीय प्रश्नों को हल करने में कितने सक्षम हैं?
- विज्ञान/गणित के प्रति अभिरुचि और सकारात्मक दृष्टिकोण है या नहीं?
उद्देश्य (Objectives):
- छात्र अधिगम का निदान (Diagnosis): छात्रों की शक्तियों और कमजोरियों की पहचान करना (उदा: क्या छात्र रासायनिक समीकरण संतुलित कर पा रहा है? क्या उसे दशमलव संक्रियाएँ समझ में आ रही हैं?)।
- शिक्षण की प्रभावशीलता का आकलन (Assessment of Teaching Effectiveness): शिक्षण विधियों, सामग्री और रणनीतियों की सफलता जाँचना (उदा: क्या प्रयोगात्मक विधि से सिखाने पर छात्रों ने प्रकाश के परावर्तन के नियम बेहतर समझे?)।
- छात्र प्रगति की निगरानी (Monitoring Progress): छात्रों की निरंतर प्रगति को ट्रैक करना और उनके सीखने के स्तर का पता लगाना।
- श्रेणीकरण एवं चयन (Grading and Selection): उपलब्धि के आधार पर उचित श्रेणी देना या आगे के अध्ययन/कार्य के लिए चयन करना (हालाँकि यह मुख्य उद्देश्य नहीं होना चाहिए)।
- पाठ्यक्रम सुधार (Curriculum Improvement): पाठ्यक्रम की प्रासंगिकता और प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना और आवश्यक सुधार के लिए प्रतिपुष्टि प्रदान करना।
- प्रेरणा प्रदान करना (Motivation): उपलब्धि की स्पष्ट जानकारी देकर छात्रों को आगे सीखने के लिए प्रेरित करना।
- पूर्वानुमान (Prediction): छात्रों की भविष्य की शैक्षिक सफलता का अनुमान लगाने में सहायता करना।
महत्व (Significance):
- छात्रों के लिए: उन्हें उनकी प्रगति और सुधार के क्षेत्रों के बारे में जागरूक करता है, आत्म-मूल्यांकन में सहायता करता है, सीखने को सार्थक बनाता है।
- शिक्षकों के लिए: शिक्षण की प्रभावशीलता का पता चलता है, पाठ योजना बनाने और शिक्षण रणनीतियों को समायोजित करने में मदद मिलती है, छात्रों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को समझने में सहायक होता है।
- अभिभावकों के लिए: उन्हें अपने बच्चे की प्रगति और क्षमताओं के बारे में जानकारी मिलती है, वे सहायता प्रदान कर सकते हैं।
- विद्यालय प्रशासन के लिए: शैक्षिक कार्यक्रमों की गुणवत्ता का आकलन करने, संसाधन आवंटन और नीति निर्माण में मदद मिलती है।
- शैक्षिक शोध के लिए: नई शिक्षण विधियों या पाठ्य सामग्री के प्रभाव का मूल्यांकन करने में आधार प्रदान करता है।
- विज्ञान एवं गणित शिक्षण के लिए विशेष महत्व: ये विषय अमूर्त अवधारणाओं, कौशलों और व्यावहारिक अनुप्रयोग पर आधारित हैं। मूल्यांकन यह सुनिश्चित करता है कि छात्र केवल रटने की बजाय वैज्ञानिक तर्क और गणितीय समझ विकसित कर रहे हैं।
5.2 मूल्यांकन की तकनीकें (Techniques of Evaluation)
मूल्यांकन केवल लिखित परीक्षाओं तक सीमित नहीं है। विभिन्न तकनीकों का प्रयोग विभिन्न उद्देश्यों और कौशलों के मूल्यांकन के लिए किया जाता है:
1. परीक्षण (Tests):
- मौखिक परीक्षण (Oral Tests): प्रश्नों के मौखिक उत्तर। त्वरित प्रतिक्रिया, स्पष्टता और अवधारणा की समझ जाँचने के लिए उपयुक्त। (उदा: विज्ञान में किसी घटना के कारण पूछना, गणित में त्वरित मानसिक गणना)।
- लिखित परीक्षण (Written Tests): सबसे आम। इसमें विभिन्न प्रकार के प्रश्न हो सकते हैं:
- वस्तुनिष्ठ प्रकार (Objective Type): बहुविकल्पीय (MCQ), सत्य-असत्य, रिक्त स्थान भरना, मिलान करना। बड़ी संख्या में छात्रों के ज्ञान का त्वरित मूल्यांकन। (उदा: परमाणु क्रमांक किसे कहते हैं? √16 का मान क्या है?)।
- लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions - SAQ): संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न। तथ्यात्मक ज्ञान, परिभाषाएँ, सूत्रों के अनुप्रयोग का मूल्यांकन। (उदा: प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कारकों के नाम लिखिए। समीकरण 2x + 3 = 11 को हल कीजिए।)
- दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions - LAQ/Essay Type): विस्तृत उत्तर। समझ, विश्लेषण, संश्लेषण, व्याख्या और लेखन कौशल का मूल्यांकन। (उदा: न्यूटन के गति के नियमों की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए। द्विघात समीकरण को हल करने की विधियों का वर्णन कीजिए।)
- प्रायोगिक परीक्षण (Practical Tests): विज्ञान में विशेष रूप से महत्वपूर्ण। उपकरणों का उपयोग, प्रयोग करना, प्रेक्षण लेना, डेटा रिकॉर्ड करना, निष्कर्ष निकालना, रिपोर्ट लिखना आदि कौशलों का मूल्यांकन। (उदा: दिए गए उपकरणों से एक सरल विद्युत परिपथ बनाइए। किसी अम्ल-क्षार अनुमापन प्रयोग को करके सांद्रता ज्ञात कीजिए।) गणित में भी ज्यामितीय रचनाओं या डेटा संग्रहण/विश्लेषण के लिए प्रयोगात्मक कार्य शामिल हो सकते हैं।
2. अवलोकन (Observation):
- शिक्षक द्वारा कक्षा में, प्रयोगशाला में या अन्य गतिविधियों के दौरान छात्रों के व्यवहार, रुचि, भागीदारी, सामाजिक संपर्क, प्रयोग करने का तरीका, समस्या समाधान का प्रयास आदि का व्यवस्थित और उद्देश्यपूर्ण अवलोकन करना।
- रिकॉर्ड रखना: अवलोकन के आधार पर नोट्स बनाना या चेकलिस्ट/रेटिंग स्केल का उपयोग करना। (उदा: क्या छात्र सुरक्षा नियमों का पालन कर रहा है? क्या वह समूह कार्य में सक्रिय है? क्या वह गणित की समस्या को हल करने के लिए विभिन्न तरीके आजमा रहा है?)।
3. साक्षात्कार (Interview):
- शिक्षक द्वारा छात्र से एक-एक या छोटे समूह में बातचीत करना।
- इससे छात्र की गहन समझ, तर्क करने की क्षमता, अभिवृत्ति और व्यक्तिगत समस्याओं को जानने में मदद मिलती है। (उदा: किसी विज्ञान प्रयोग के परिणामों के बारे में चर्चा करना। गणित की किसी जटिल समस्या को हल करने के लिए उसकी सोच प्रक्रिया को समझना।)
4. प्रश्नावली (Questionnaire):
- छात्रों को लिखित प्रश्नों के सेट दिए जाते हैं, जिनके उत्तर वे लिखकर देते हैं।
- अभिवृत्ति, रुचि, राय, स्व-मूल्यांकन या तथ्यात्मक जानकारी एकत्र करने के लिए उपयोगी। (उदा: विज्ञान पढ़ने में आपकी रुचि कितनी है? गणित पढ़ते समय आपको किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है?)
5. चेकलिस्ट (Checklist):
- विशिष्ट व्यवहारों या कौशलों की एक सूची होती है जिसे शिक्षक अवलोकन करते समय टिक करता है कि वह व्यवहार/कौशल उपस्थित है या नहीं।
- (उदा: प्रायोगिक कार्य के लिए: सुरक्षा चश्मा पहना? उपकरण सही तरीके से पकड़े? प्रेक्षण सटीक रिकॉर्ड किए? गणित के लिए: समस्या को पढ़कर समझा? उपयुक्त सूत्र/विधि चुनी? गणना में त्रुटि नहीं की?)
6. रेटिंग स्केल (Rating Scale):
- चेकलिस्ट की तरह, लेकिन इसमें केवल 'हाँ/नहीं' के बजाय किसी कौशल या गुणवत्ता के स्तर का मूल्यांकन किया जाता है (जैसे: उत्कृष्ट, अच्छा, औसत, सुधार की आवश्यकता या 1-5 का स्केल)।
- (उदा: प्रस्तुतीकरण कौशल, समूह सहयोग, प्रायोगिक निष्पादन, गणितीय तर्क की गुणवत्ता का मूल्यांकन)।
7. पोर्टफोलियो (Portfolio):
- छात्र के कार्यों का व्यवस्थित संग्रह जो समय के साथ उसकी प्रगति, प्रयासों और उपलब्धियों को दर्शाता है।
- इसमें शामिल हो सकते हैं: असाइनमेंट्स, प्रोजेक्ट रिपोर्ट्स, प्रयोग रिकॉर्ड, गणितीय समस्याओं के हल, रचनात्मक कार्य, स्व-मूल्यांकन, शिक्षक की टिप्पणियाँ।
- यह सतत और व्यापक मूल्यांकन (CCE) का एक शक्तिशाली उपकरण है।
8. प्रोजेक्ट वर्क (Project Work):
- छात्रों द्वारा किसी विषय पर गहन शोध, जाँच या रचनात्मक कार्य करना। यह स्वतंत्र अध्ययन, अनुसंधान कौशल, डेटा संग्रहण एवं विश्लेषण, प्रस्तुतीकरण और समस्या समाधान क्षमता का मूल्यांकन करता है।
- (उदा: विज्ञान: स्थानीय जल स्रोतों की गुणवत्ता का अध्ययन, सौर ऊर्जा मॉडल बनाना। गणित: घर के बजट का विश्लेषण, किसी खेल में संभाव्यता का अध्ययन, ऐतिहासिक गणितज्ञों पर प्रोजेक्ट)।
9. आत्म-मूल्यांकन एवं सहकर्मी मूल्यांकन (Self and Peer Assessment):
- आत्म-मूल्यांकन: छात्र स्वयं अपने कार्य, प्रयास और प्रगति का आकलन करते हैं। यह आत्म-जागरूकता और जिम्मेदारी विकसित करता है।
- सहकर्मी मूल्यांकन: छात्र एक-दूसरे के कार्य का आकलन करते हैं (रूब्रिक्स या दिशा-निर्देशों के आधार पर)। यह समझ को गहरा करता है और सहयोग को बढ़ावा देता है।
5.3 निर्माणात्मक, योगात्मक एवं सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (Formative, Summative and Continuous and Comprehensive Evaluation - CCE)
निर्माणात्मक मूल्यांकन (Formative Assessment - FA):
- उद्देश्य: शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के दौरान छात्र की प्रगति की निगरानी करना और सुधारात्मक कार्रवाई के लिए प्रतिपुष्टि देना। इसमें ग्रेडिंग पर जोर नहीं होता।
- प्रकृति: नैदानिक (Diagnostic), सुधारात्मक (Remedial)। अक्सर अनौपचारिक और लगातार चलने वाला।
- तकनीकें: कक्षा अवलोकन, क्विज़, शीघ्र लिखित प्रतिक्रियाएँ (Exit Tickets), मौखिक प्रश्न, चर्चा, ड्राफ्ट कार्य, स्व-मूल्यांकन।
- उपयोग: शिक्षक शिक्षण विधियों को तुरंत समायोजित कर सकता है। छात्र अपनी गलतियों से सीख सकते हैं। (उदा: विज्ञान कक्षा में एक छोटा क्विज देना यह देखने के लिए कि क्या छात्रों ने पिछली अवधारणा समझी। गणित कक्षा में बोर्ड पर एक समस्या हल करवाकर समझ का स्तर जाँचना।)
योगात्मक मूल्यांकन (Summative Assessment - SA):
- उद्देश्य: एक विशिष्ट शिक्षण अवधि के अंत में (जैसे यूनिट, सेमेस्टर, सत्र) छात्र की कुल उपलब्धि का आकलन करना और उसे ग्रेड/अंक देना।
- प्रकृति: प्रमाणनात्मक (Certifying), चयनात्मक (Selective)। आमतौर पर औपचारिक और संरचित।
- तकनीकें: यूनिट टेस्ट, अर्धवार्षिक/वार्षिक परीक्षाएँ, मानकीकृत परीक्षण, प्रोजेक्ट प्रेजेंटेशन का अंतिम मूल्यांकन।
- उपयोग: ग्रेडिंग, प्रमोशन, प्रमाणपत्र देने के लिए। शिक्षण की समग्र प्रभावशीलता का आकलन। (उदा: विज्ञान/गणित की अर्धवार्षिक परीक्षा। किसी प्रोजेक्ट का अंतिम मूल्यांकन।)
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Evaluation - CCE):
- अवधारणा: यह निर्माणात्मक और योगात्मक मूल्यांकन का एकीकृत रूप है, जिसे भारतीय स्कूली शिक्षा में (विशेषकर कक्षा 1-10 तक) लागू किया गया था। अब NEP 2020 के तहत इसका सार तत्व 'स्कूल आधारित मूल्यांकन' में समाहित है।
- सतत (Continuous): मूल्यांकन शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में नियमित और लगातार जुड़ा रहता है। यह केवल अंत में होने वाली परीक्षाओं पर निर्भर नहीं करता।
- व्यापक (Comprehensive): मूल्यांकन छात्र के विकास के सभी पहलुओं को शामिल करता है:
- शैक्षिक (Scholastic): विषयवस्तु ज्ञान और समझ (विज्ञान, गणित, भाषा आदि)।
- सह-शैक्षिक (Co-Scholastic): जीवन कौशल (सोचने के कौशल, सामाजिक कौशल, भावनात्मक कौशल), अभिवृत्ति (विषयों, शिक्षकों, स्कूल के प्रति), मूल्य, सह-पाठयक्रम गतिविधियाँ (खेल, संगीत, कला), स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा।
- उद्देश्य:
- छात्रों पर परीक्षा के तनाव को कम करना।
- सीखने की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करना।
- छात्र के सर्वांगीण विकास (संज्ञानात्मक, भावात्मक, मनोप्रेरक) का आकलन करना।
- छात्रों की विविध क्षमताओं और योग्यताओं को पहचानना।
- तकनीकें: FA और SA की सभी तकनीकें (टेस्ट, क्विज़, प्रोजेक्ट, पोर्टफोलियो, अवलोकन, चेकलिस्ट, स्व/सहकर्मी मूल्यांकन, प्रस्तुतिकरण, रचनात्मक अभिव्यक्ति) का उपयोग शैक्षिक और सह-शैक्षिक दोनों क्षेत्रों में किया जाता है।
- रिपोर्टिंग: छात्रों को नियमित प्रतिपुष्टि और अंक/ग्रेड के साथ-साथ उनकी शक्तियों, कमजोरियों और सुधार के सुझावों वाली विस्तृत प्रगति रिपोर्ट दी जाती है।
5.4 बधिरता की सीमाओं के कारण मूल्यांकन में समायोजन (Adjustments in Evaluation due to Limitations of Deafness)
बधिर छात्रों के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया को उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप समावेशी (Inclusive) और न्यायसंगत (Equitable) बनाने के लिए समायोजन आवश्यक हैं:
1. संचार पहुँच (Communication Access):
- भाषा का विकल्प: मूल्यांकन सामग्री और निर्देश छात्र की पसंदीदा संचार भाषा में होनी चाहिए (जैसे: सांकेतिक भाषा (ISL), लिखित हिंदी/अंग्रेजी, मौखिक भाषा + सांकेतिक समर्थन)।
- सांकेतिक भाषा दुभाषियों का उपयोग: परीक्षा के दौरान या निर्देश देते समय यदि आवश्यक हो तो प्रशिक्षित दुभाषियों की व्यवस्था करना। दुभाषिया केवल संचार का माध्यम हो, उत्तर न दे या संकेत न करे।
- स्पष्ट और दृश्य निर्देश: निर्देश लिखित रूप में स्पष्ट, संक्षिप्त और बिंदुवार देना। सांकेतिक भाषा वीडियो या चित्रों द्वारा भी निर्देश देना।
2. मूल्यांकन प्रारूप समायोजन (Format Adjustments):
- भाषाई जटिलता में कमी: प्रश्नों की भाषा सरल, स्पष्ट और सीधी होनी चाहिए। जटिल वाक्य संरचना, अस्पष्ट शब्द या मुहावरों से बचना चाहिए।
- समय विस्तार (Extra Time): भाषा प्रसंस्करण और लिखित उत्तर देने में अधिक समय लग सकता है। पर्याप्त अतिरिक्त समय देना।
- वस्तुनिष्ठ प्रश्नों पर अधिक जोर: MCQ, सत्य-असत्य, रिक्त स्थान भरना जैसे प्रश्न जहाँ संभव हो, उपयोगी हो सकते हैं क्योंकि इनमें कम लिखित अभिव्यक्ति की आवश्यकता होती है।
- लघु उत्तरीय/निबंध प्रश्नों का संशोधन: लंबे लिखित उत्तरों की माँग कम करना। विचारों को संक्षेप में व्यक्त करने के विकल्प देना (जैसे: फ्लो-चार्ट, बुलेट पॉइंट्स, आरेख)।
- दृश्य सहायक सामग्री (Visual Aids): चित्रों, आरेखों, चार्ट्स, ग्राफ़्स का उपयोग बढ़ाना। प्रश्नों को समझने में ये मददगार होते हैं। (उदा: विज्ञान में प्रयोग सेटअप का आरेख, गणित में ज्यामितीय आकृतियाँ दिखाना)。
3. प्रशासनिक समायोजन (Administrative Adjustments):
- शोर मुक्त वातावरण: परीक्षा ऐसे कमरे में होनी चाहिए जहाँ ध्वनि विचलन कम से कम हो (बधिर छात्र अक्सर कंपन/दृश्य विकर्षण के प्रति संवेदनशील होते हैं)।
- अलग बैठक व्यवस्था: यदि आवश्यक हो तो छात्र को अलग बैठाना ताकि दुभाषिया या अन्य सहायक सामग्री का उपयोग आसानी से हो सके।
- वैकल्पिक मूल्यांकन विधियाँ: जहाँ उपयुक्त हो, लिखित परीक्षा के स्थान पर:
- प्रोजेक्ट वर्क: मॉडल बनाना, प्रयोग करना, डेटा विश्लेषण करना।
- प्रस्तुतिकरण: सांकेतिक भाषा या विजुअल एड्स का उपयोग करके प्रस्तुत करना।
- व्यावहारिक मूल्यांकन: विज्ञान प्रयोग करके दिखाना, गणितीय समस्याओं को हल करते हुए प्रदर्शित करना।
- मौखिक परीक्षा (यदि श्रवण यंत्र/कॉकलियर इम्प्लांट है और छात्र मौखिक भाषा का उपयोग करता है): एकांत में, स्पष्ट और धीरे बोलकर।
4. शिक्षक की भूमिका:
- संवेदनशीलता और जागरूकता: बधिरता और सांकेतिक भाषा/संस्कृति के बारे में जागरूक होना।
- लचीलापन: मूल्यांकन के तरीकों और मानदंडों में लचीला रहना।
- व्यक्तिगत शैक्षिक योजना (IEP) का पालन: यदि छात्र की IEP है, तो उसमें निर्धारित मूल्यांकन समायोजनों का सख्ती से पालन करना।
- छात्र से परामर्श: मूल्यांकन के सर्वोत्तम तरीकों के बारे में जानने के लिए छात्र से बात करना।
महत्वपूर्ण: यह समायोजन छात्र की अक्षमता (disability) को कम करने के लिए नहीं, बल्कि संचार और भाषा की बाधा (communication and language barrier) को दूर करके उसकी वास्तविक विषयवस्तु ज्ञान और कौशल का उचित आकलन करने के लिए हैं। मूल्यांकन का स्तर समान रहना चाहिए।
5.5 विज्ञान एवं गणित में शिक्षक-निर्मित परीक्षणों (TMT) का डिजाइन (Designing Teacher-Made Tests (TMT) in Science and Mathematics)
शिक्षक-निर्मित परीक्षण (TMT) किसी विशिष्ट कक्षा, पाठ्यक्रम और छात्रों की आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षक द्वारा तैयार किए जाते हैं। इनका डिजाइन सावधानीपूर्वक करना चाहिए:
उद्देश्यों का निर्धारण (Define Objectives):
- सबसे पहले यह स्पष्ट करें कि परीक्षण से क्या मापना चाहते हैं? पाठ्यक्रम के विशिष्ट शिक्षण उद्देश्यों (ज्ञान, समझ, अनुप्रयोग, विश्लेषण, मूल्यांकन, रचना - ब्लूम का वर्गीकरण) को ध्यान में रखें।
- (उदा: विज्ञान: 'छात्र प्रकाश के परावर्तन के नियमों को समझ और लागू कर सकेंगे।' गणित: 'छात्र द्विघात समीकरणों को गुणनखंड विधि से हल कर सकेंगे।')
परीक्षण योजना (ब्लूप्रिंट) तैयार करना (Prepare Test Blueprint):
- यह एक टेबल होती है जो परीक्षण के विषयवस्तु क्षेत्रों, उद्देश्यों के स्तरों (ब्लूम के अनुसार) और प्रश्नों के प्रकार/अंकों के बीच संतुलन सुनिश्चित करती है।
- स्तंभ: विषयवस्तु इकाइयाँ (जैसे: विज्ञान - गति, बल, प्रकाश; गणित - बीजगणित, ज्यामिति, क्षेत्रमिति)
- पंक्तियाँ: उद्देश्य स्तर (ज्ञान, समझ, अनुप्रयोग...)
- खाने (Cells): प्रत्येक विषयवस्तु और उद्देश्य स्तर के लिए प्रश्नों की संख्या/अंक निर्धारित करना।
- इससे परीक्षण की वैधता (Validity - क्या मापना चाहता है वही मापता है) और विश्वसनीयता (Reliability - सुसंगत परिणाम) बढ़ती है। यह सुनिश्चित करता है कि परीक्षण पाठ्यक्रम का प्रतिनिधित्व करे और केवल रटे हुए तथ्यों को नहीं, बल्कि उच्च स्तरीय सोच को भी मापे।
प्रश्नों का चयन एवं निर्माण (Select and Construct Questions):
- विविधता: विभिन्न प्रकार के प्रश्नों का उपयोग करें (वस्तुनिष्ठ, लघु उत्तरीय, दीर्घ उत्तरीय, गणना, आरेख आधारित)। यह विभिन्न कौशलों और उद्देश्य स्तरों का मूल्यांकन करता है।
- स्पष्टता और संक्षिप्तता: प्रश्न स्पष्ट, अस्पष्टतारहित और संक्षिप्त भाषा में होने चाहिए। अप्रासंगिक जानकारी न हो।
- कठिनाई स्तर: प्रश्नों का कठिनाई स्तर छात्रों की क्षमता के अनुरूप होना चाहिए। कुछ सरल, कुछ मध्यम, कुछ चुनौतीपूर्ण प्रश्न रखें।
- विज्ञान के लिए विशेष:
- प्रायोगिक समझ: प्रयोगों के उद्देश्य, प्रक्रिया, प्रेक्षण, निष्कर्ष, सावधानियों से संबंधित प्रश्न।
- आरेख/ग्राफ: आरेखों/ग्राफों को पहचानना, समझना, बनाना या उनका विश्लेषण करने वाले प्रश्न।
- वास्तविक जीवन अनुप्रयोग: वैज्ञानिक सिद्धांतों के दैनिक जीवन में उपयोग पर प्रश्न।
- गणित के लिए विशेष:
- समस्या समाधान: विभिन्न प्रकार की शाब्दिक समस्याएँ (Word Problems)।
- प्रमाण: ज्यामितीय प्रमाणों से संबंधित प्रश्न।
- गणनाएँ: सटीक गणना कौशल की जाँच।
- अवधारणात्मक समझ: सूत्रों के पीछे की अवधारणा को समझने पर प्रश्न (सिर्फ रटकर नहीं)।
- मूल प्रश्न: प्रश्न मौलिक हों, सीधे किताबों से नकल किए हुए नहीं।
उत्तर कुंजी तैयार करना (Prepare Answer Key and Marking Scheme):
- प्रत्येक प्रश्न के लिए मानक उत्तर तैयार करें।
- अंकन योजना: प्रत्येक प्रश्न/उप-प्रश्न के लिए स्पष्ट अंक निर्धारित करें। मुख्य बिंदुओं को अंक आवंटित करें। यह अंकन में वस्तुनिष्ठता (Objectivity) लाता है।
- मॉडल उत्तर: विस्तृत उत्तर वाले प्रश्नों के लिए मॉडल उत्तर बनाएँ जिसमें अपेक्षित मुख्य बिंदु शामिल हों।
परीक्षण का संकलन एवं प्रशासन (Compile and Administer the Test):
- प्रश्नों को तार्किक क्रम में व्यवस्थित करें (सरल से जटिल की ओर, एक ही विषय के प्रश्न एक साथ)।
- निर्देश: प्रत्येक खंड के लिए स्पष्ट और पूर्ण निर्देश दें।
- स्वरूपण: परीक्षा पेज साफ-सुथरा, अच्छी तरह से स्पेस्ड और पढ़ने में आसान होना चाहिए।
- समय निर्धारण: परीक्षा का समय उचित होना चाहिए (छात्रों की औसत गति और प्रश्नों की संख्या/कठिनाई के आधार पर)।
- परीक्षा का संचालन: उचित निगरानी में परीक्षा का आयोजन करें।
परीक्षण का मूल्यांकन एवं विश्लेषण (Evaluate and Analyze the Test):
- अंकन: उत्तर कुंजी और अंकन योजना का सख्ती से पालन करें। पक्षपात से बचें।
- परीक्षण विश्लेषण (Item Analysis): परीक्षण के बाद, प्रत्येक प्रश्न का विश्लेषण करें:
- कठिनाई सूचकांक (Difficulty Index): कितने छात्र प्रश्न का सही उत्तर दे पाए? बहुत आसान या बहुत कठिन प्रश्नों की पहचान करें।
- भेदक क्षमता (Discrimination Index): क्या प्रश्न अच्छे और कमजोर छात्रों में अंतर कर पाया? अच्छे प्रश्न वे होते हैं जिन्हें अच्छे छात्र अधिक बार सही करते हैं।
- विकर्षक विश्लेषण (Distractor Analysis): विकल्पों का विश्लेषण करें कि क्या गलत विकल्प (Distractors) तर्कसंगत थे और कमजोर छात्रों को आकर्षित कर रहे थे।
- परिणामों की व्याख्या: समग्र प्रदर्शन, सामान्य गलतियों, कमजोर क्षेत्रों की पहचान करें। इससे भविष्य के शिक्षण और मूल्यांकन में सुधार होगा।
शिक्षक-निर्मित परीक्षणों के लाभ:
- कक्षा विशेष के शिक्षण उद्देश्यों और पाठ्यक्रम के अनुरूप।
- छात्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं और पृष्ठभूमि को ध्यान में रख सकते हैं।
- शिक्षण के तुरंत बाद लगाए जा सकते हैं।
- विभिन्न प्रकार के प्रश्नों और उद्देश्य स्तरों को शामिल करने में लचीलापन।
- शिक्षक को अपने शिक्षण की प्रभावशीलता का सीधा प्रतिपुष्टि देते हैं।
निष्कर्ष
विज्ञान और गणित में प्रभावी मूल्यांकन एक बहुआयामी प्रक्रिया है। यह सिर्फ अंक देना नहीं, बल्कि शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को सुधारने, छात्रों की विविध क्षमताओं को पहचानने और उनके सर्वांगीण विकास में सहायता करने का साधन है। निर्माणात्मक, योगात्मक और सतत मूल्यांकन की तकनीकों का उचित मिश्रण, विभिन्न आवश्यकताओं के लिए समायोजन और सावधानीपूर्वक डिजाइन किए गए शिक्षक-निर्मित परीक्षण एक संतुलित और उपयोगी मूल्यांकन व्यवस्था की नींव रखते हैं।