Unit II: Concept and Meaning of Inclusive Education,समावेशी शिक्षा की अवधारणा एवं अर्थ

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समावेशी शिक्षा की अवधारणा एवं अर्थ




यूनिट II: समावेशी शिक्षा की अवधारणा एवं अर्थ (Unit II: Concept and Meaning of Inclusive Education)

अध्याय 2: समावेशी शिक्षा - एक समान अवसर की ओर

परिचय: प्रत्येक बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार है, चाहे उसकी पृष्ठभूमि, क्षमता या परिस्थितियाँ कुछ भी हों। समावेशी शिक्षा (Inclusive Education) इसी विश्वास और अधिकार पर आधारित एक सशक्त दर्शन और प्रैक्टिस है। यह अध्याय समावेश की परिभाषा, सिद्धांतों, एकीकरण (Integration) से इसके अंतर, इसके मार्ग में आने वाली बाधाओं और सहायक कारकों तथा समर्थन करने वाले ढाँचों, अधिनियमों और नीतियों की पड़ताल करता है।

2.1 समावेश का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Defining Inclusion)

  • अर्थ (Meaning): समावेश का सीधा सा अर्थ है "शामिल करना" या "अंतर्निहित करना"। शिक्षा के संदर्भ में, इसका तात्पर्य है सभी बच्चों को, बिना किसी भेदभाव के, सामान्य स्कूली वातावरण में साथ-साथ सीखने का अवसर प्रदान करना।
  • परिभाषा (Definition): समावेशी शिक्षा की प्रमुख परिभाषाएँ इस बात पर जोर देती हैं:
    • सभी के लिए शिक्षा (Education for ALL): यह केवल विकलांग बच्चों तक सीमित नहीं है। इसमें जाति, धर्म, भाषा, लिंग, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, प्रतिभा स्तर, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, भौगोलिक स्थिति या अन्य किसी भी कारण से शैक्षिक रूप से हाशिए पर रखे गए सभी बच्चे शामिल हैं।
    • सामान्य वातावरण (Regular Environment): बच्चों को उनके सामान्य स्कूल में, उनके साथियों के साथ, उम्र-उपयुक्त कक्षाओं में पढ़ने का अधिकार है। विशेष स्कूल अंतिम विकल्प होने चाहिए।
    • पूर्ण और सक्रिय भागीदारी (Full and Active Participation): समावेश सिर्फ शारीरिक उपस्थिति नहीं है। इसका लक्ष्य है कि प्रत्येक बच्चा पाठ्यक्रम, गतिविधियों और सामाजिक जीवन में पूरी तरह से, सक्रिय रूप से और सार्थक ढंग से भाग ले सके।
    • व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति (Meeting Individual Needs): स्कूल को अपनी शिक्षण पद्धतियों, पाठ्यक्रम, मूल्यांकन और वातावरण को प्रत्येक बच्चे की विशिष्ट शैक्षिक और सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लचीला और अनुकूल बनाना चाहिए।
    • सामुदायिक भावना (Sense of Belonging): समावेशी शिक्षा का लक्ष्य एक ऐसी सामुदायिक भावना विकसित करना है जहाँ हर बच्चा स्वीकार्य, सम्मानित, मूल्यवान और सुरक्षित महसूस करे।
  • मूलभूत विचार (Core Idea): समावेशी शिक्षा मानती है कि सभी बच्चे सीख सकते हैं, लेकिन उनकी सीखने की गति, शैली और आवश्यकताएँ अलग-अलग हो सकती हैं। यह स्कूल को बदलने पर केंद्रित है, न कि बच्चे को 'ठीक' करने पर।

2.2 समावेश के सिद्धांत (Principles of Inclusion)

समावेशी शिक्षा कुछ मौलिक सिद्धांतों पर टिकी हुई है:

  1. सार्वभौमिक डिजाइन (Universal Design for Learning - UDL): पाठ्यक्रम, शिक्षण सामग्री और मूल्यांकन को शुरू से ही इस तरह डिजाइन किया जाना चाहिए कि वे सीखने वालों की व्यापक विविधता की जरूरतों को पूरा कर सकें (जैसे, जानकारी प्रस्तुत करने के कई तरीके, अभिव्यक्ति के कई तरीके, जुड़ाव के कई तरीके)।
  2. समानता बनाम समता (Equity vs. Equality): यह सबको एक जैसा (समता) देने के बजाय, प्रत्येक बच्चे को उसकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार वह सहायता और संसाधन प्रदान करने (समानता) पर जोर देता है ताकि सभी को सफल होने का समान अवसर मिले।
  3. विविधता का सम्मान और मूल्य (Respect and Value Diversity): कक्षा में मौजूद सभी प्रकार की भिन्नताओं (सांस्कृतिक, भाषाई, क्षमता आधारित, आदि) को सकारात्मक रूप से स्वीकार करना, उनका सम्मान करना और उन्हें सीखने के अवसर के रूप में देखना।
  4. सहयोगात्मक साझेदारी (Collaborative Partnerships): शिक्षकों, विशेष शिक्षकों, माता-पिता/अभिभावकों, सहपाठियों, प्रशासन और समुदाय के बीच मजबूत सहयोग और साझेदारी आवश्यक है।
  5. निरंतर सहायता और सेवाएँ (Ongoing Support and Services): आवश्यकता पड़ने पर बच्चों, शिक्षकों और परिवारों को विशेषज्ञ सहायता, संसाधन और सेवाएँ (जैसे थेरेपी, सहायक तकनीक, प्रशिक्षण) उपलब्ध कराना।
  6. सकारात्मक सामाजिक संबंध (Positive Social Relationships): सभी बच्चों के बीच सहपाठी स्वीकृति, मित्रता और सहयोग को बढ़ावा देना। बुलिंग और भेदभाव को रोकना।
  7. बच्चे-केंद्रित दृष्टिकोण (Child-Centered Approach): शिक्षा की योजना और वितरण बच्चे की व्यक्तिगत शक्तियों, रुचियों और आवश्यकताओं पर केंद्रित होना चाहिए।

2.3 एकीकरण बनाम समावेशी शिक्षा (Integration vs. Inclusive Education)

यह एक महत्वपूर्ण भेद है। दोनों में बुनियादी अंतर दर्शन और दृष्टिकोण का है:

विशेषता (Feature) एकीकरण (Integration) समावेशी शिक्षा (Inclusive Education)
मूल दर्शन (Philosophy) बच्चे को सामान्य व्यवस्था में "फिट" करना। सामान्य व्यवस्था को सभी बच्चों के अनुकूल बनाना।
फोकस (Focus) बच्चे को बदलना, उसे सामान्य कक्षा में रहने के "योग्य" बनाना। स्कूल प्रणाली, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों और वातावरण को बदलना ताकि वह सभी बच्चों की विविध जरूरतों को पूरा कर सके।
स्थान (Placement) बच्चे को सामान्य कक्षा में रखा जाता है, लेकिन अक्सर अलग-थलग या सीमित भागीदारी के साथ। बच्चा पूर्णकालिक सामान्य कक्षा का सदस्य होता है, जहाँ उसकी पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए समर्थन दिया जाता है।
समर्थन (Support) समर्थन अक्सर कक्षा के बाहर दिया जाता है (जैसे, रिसोर्स रूम में खींचकर ले जाना)। समर्थन बच्चे पर केंद्रित होता है। समर्थन ज्यादातर सामान्य कक्षा के भीतर ही दिया जाता है। समर्थन कक्षा और शिक्षण को अनुकूल बनाने पर केंद्रित होता है (सह-शिक्षण, UDL)।
स्वामित्व (Ownership) विशेष शिक्षक या रिसोर्स टीचर की प्राथमिक जिम्मेदारी। कक्षा शिक्षक की प्राथमिक जिम्मेदारी, विशेषज्ञों के सहयोग से।
लक्ष्य (Goal) बच्चे का सामान्य कक्षा में "स्थान पाना"। बच्चे का सामान्य कक्षा में पूर्ण सदस्य और सक्रिय सीखने वाला बनना।
भागीदारी (Participation) सीमित या प्रतीकात्मक भागीदारी। पाठ्यक्रम और सामाजिक गतिविधियों में पूर्ण और सार्थक भागीदारी।
दृष्टिकोण (Perspective) विकलांगता/भिन्नता बच्चे में है। विकलांगता/भिन्नता बच्चे में नहीं, बल्कि स्कूल की अक्षमता में है जो विविधता को समायोजित नहीं कर पाती। ("सामाजिक मॉडल")

2.4 समावेशी शिक्षा की बाधाएँ और सुविधाकारक (Barriers and Facilitators of Inclusive Education)

  • बाधाएँ (Barriers):
    • दृष्टिकोणात्मक (Attitudinal): शिक्षकों, अभिभावकों, प्रशासकों या सहपाठियों में नकारात्मक रूढ़िवादिता, भय, अज्ञानता, कम उम्मीदें या पूर्वाग्रह। ("वो यहाँ नहीं सीख पाएगा", "दूसरे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होगी")।
    • भौतिक (Physical): सीढ़ियाँ, संकरे दरवाजे, असंगत फर्नीचर, शौचालयों तक पहुँच न होना, परिवहन की कमी।
    • शैक्षिक (Educational): कठोर और अलचकला पाठ्यक्रम, एक जैसी शिक्षण विधियाँ, असंगत मूल्यांकन प्रणालियाँ, शिक्षकों के पास विविध आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रशिक्षण या कौशल का अभाव।
    • संसाधनात्मक (Resource): पर्याप्त शिक्षण सामग्री, सहायक तकनीकों (Assistive Technologies), प्रशिक्षित कर्मचारी (विशेष शिक्षक, थेरेपिस्ट), सहायक कर्मचारी (Aides), धन और समय का अभाव।
    • संगठनात्मक/नीतिगत (Organizational/Policy): कठोर प्रशासनिक ढाँचे, समावेश को प्राथमिकता न देने वाली नीतियाँ, पर्याप्त सहयोग के लिए समय का अभाव, भाषा की बाधाएँ।
    • सामाजिक (Social): सहपाठियों द्वारा बहिष्कार या उत्पीड़न, समुदाय में स्वीकृति की कमी।
  • सुविधाकारक (Facilitators):
    • सकारात्मक दृष्टिकोण (Positive Attitudes): नेतृत्व और शिक्षकों की समावेश के प्रति प्रतिबद्धता, सभी बच्चों की क्षमता में विश्वास, सहपाठियों की स्वीकृति और समर्थन।
    • प्रभावी नेतृत्व (Effective Leadership): प्रधानाचार्य और प्रशासन का दृढ़ समर्थन, समावेशी संस्कृति को बढ़ावा देना, संसाधन जुटाना।
    • प्रशिक्षित एवं सहयोगी शिक्षक (Trained & Collaborative Teachers): विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों का निरंतर प्रशिक्षण और व्यावसायिक विकास। विशेष शिक्षकों, थेरेपिस्टों और सहयोगियों के साथ मजबूत टीम वर्क।
    • पर्याप्त संसाधन एवं सहायता (Adequate Resources & Support): सहायक तकनीक, संशोधित सामग्री, सहायक कर्मचारी, विशेषज्ञ सेवाएँ (भाषण/व्यावसायिक/शारीरिक थेरेपी), पर्याप्त धन।
    • लचीला पाठ्यक्रम एवं शिक्षण (Flexible Curriculum & Pedagogy): सार्वभौमिक डिजाइन फॉर लर्निंग (UDL) सिद्धांतों का उपयोग, विभेदित निर्देश (Differentiated Instruction), बहुस्तरीय समर्थन प्रणाली (Multi-Tiered Systems of Support - MTSS)।
    • सुलभ वातावरण (Accessible Environment): भौतिक बाधाओं को दूर करना (रैंप, शौचालय), सूचना को सुलभ बनाना (ब्रैल, सांकेतिक भाषा, सरल भाषा)।
    • माता-पिता/अभिभावकों की सक्रिय भागीदारी (Active Parental Involvement): अभिभावकों को साझेदार के रूप में शामिल करना, उनकी आवाज सुनना।
    • सहायक नीतियाँ एवं कानून (Supportive Policies & Legislation): समावेश को अनिवार्य और समर्थन करने वाले स्पष्ट राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय नीतिगत ढाँचे और कानून (जैसे, भारत में RTE अधिनियम)।

2.5 समावेशी शिक्षा के लिए ढाँचे, अधिनियम और नीतिगत प्रावधान (Framework, Acts, Policy Provisions for Inclusive Education)

समावेशी शिक्षा को मजबूत करने के लिए विभिन्न स्तरों पर ढाँचे और कानूनी प्रावधान मौजूद हैं:

  • अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे (International Frameworks):
    • संयुक्त राष्ट्र अधिकारों का अभिसमय (UN Convention on the Rights of the Child - CRC, 1989): सभी बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है, जिसमें शिक्षा का अधिकार शामिल है।
    • विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UN Convention on the Rights of Persons with Disabilities - UNCRPD, 2006): अनुच्छेद 24 विशेष रूप से समावेशी शिक्षा प्रणाली के अधिकार पर जोर देता है और विकलांग बच्चों को सामान्य स्कूलों से अलग करने का विरोध करता है। भारत ने इसकी पुष्टि की है।
    • शिक्षा के लिए 2030 एजेंडा / SDG-4 (Sustainable Development Goal 4): "सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना और आजीवन सीखने के अवसरों को बढ़ावा देना"।
  • राष्ट्रीय ढाँचे और अधिनियम (National Frameworks & Acts - भारत के संदर्भ में):
    • शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right to Education Act - RTE, 2009): 6-14 वर्ष के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देता है। धारा 3(2) विशेष रूप से कहती है कि एक गैर-सक्षम बच्चे को भी उसकी उम्र के बच्चों की कक्षा में पढ़ने का अधिकार है। धारा 12(1)(c) निजी स्कूलों में कमजोर वर्गों और वंचित समूहों के लिए 25% सीटें आरक्षित करती है।
    • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम (Rights of Persons with Disabilities Act - RPWD Act, 2016): यह UNCRPD के साथ संरेखित एक प्रगतिशील कानून है।
      • धारा 16: दिव्यांग बच्चों को मुफ्त शिक्षा का अधिकार देती है।
      • धारा 17: सरकार को समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने, शिक्षक प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम अनुकूलन और सहायक सेवाएँ प्रदान करने का निर्देश देती है।
      • यह अधिनियम दिव्यांगता की परिभाषा को व्यापक बनाता है और आरक्षण को बढ़ाता है।
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy - NEP, 2020): समावेश और समानता को एक मौलिक सिद्धांत के रूप में रखती है।
      • सभी बच्चों को उनकी पृष्ठभूमि या क्षमता की परवाह किए बिना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करने पर जोर।
      • बहुभाषावाद को बढ़ावा देना।
      • सीखने के परिणामों पर ध्यान केंद्रित करना जो विविधता को समायोजित करते हैं।
      • विशेष शिक्षा केंद्रों (Resource Centers) को मजबूत करना और सामान्य स्कूलों में समर्थन प्रदान करना।
      • गिफ्टेड बच्चों सहित सभी के लिए समावेश।
    • समग्र शिक्षा अभियान (Samagra Shiksha Abhiyan): स्कूली शिक्षा के लिए केंद्र प्रायोजित योजना जो पूर्ववर्ती योजनाओं (जैसे सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान) को समेकित करती है। इसमें दिव्यांग बच्चों सहित सीमांत समूहों के लिए समावेशी शिक्षा घटक शामिल हैं, जैसे:
      • दिव्यांग बच्चों के लिए वार्षिक शिक्षण अनुदान।
      • सहायक उपकरण और सहायक तकनीक।
      • बैरियर-फ्री एक्सेस के लिए स्कूलों का उन्नयन।
      • शिक्षक प्रशिक्षण।
      • होम-बेस्ड एजुकेशन (HBE) गंभीर रूप से दिव्यांग बच्चों के लिए।
  • नीतिगत प्रावधानों का महत्व (Significance of Policy Provisions): ये ढाँचे और कानून:
    • समावेशी शिक्षा को एक कानूनी अधिकार बनाते हैं।
    • सरकारों और संस्थानों के लिए दिशानिर्देश और जवाबदेही तय करते हैं।
    • संसाधन आवंटन के लिए आधार प्रदान करते हैं।
    • भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं।
    • समावेशी प्रथाओं के कार्यान्वयन के लिए एक रोडमैप प्रस्तुत करते हैं।

अध्याय का सारांश (Chapter Summary):

समावेशी शिक्षा सभी बच्चों को, उनकी विविधता और आवश्यकताओं के बावजूद, साथ-साथ सीखने, विकसित होने और पनपने के अवसर प्रदान करने का एक न्यायसंगत और मानवीय दृष्टिकोण है। यह सिर्फ शारीरिक उपस्थिति से कहीं आगे जाकर पूर्ण सामाजिक और शैक्षिक भागीदारी पर जोर देती है। समावेश के सिद्धांत – समानता, सार्वभौमिक डिजाइन, सहयोग और विविधता का सम्मान – इसकी नींव हैं। इसे एकीकरण से अलग करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि समावेश सिस्टम को बदलने की मांग करता है, न कि बच्चे को। हालाँकि दृष्टिकोणात्मक, भौतिक, शैक्षिक और संसाधन संबंधी बाधाएँ मौजूद हैं, लेकिन प्रभावी नेतृत्व, प्रशिक्षित शिक्षक, पर्याप्त संसाधन, लचीली पद्धतियाँ और सहायक नीतियाँ इसके सशक्त सुविधाकारक हैं। अंतर्राष्ट्रीय अभिसमयों (UNCRPD), राष्ट्रीय कानूनों (RTE, RPWD) और नीतियों (NEP 2020) ने भारत में समावेशी शिक्षा को मजबूत करने के लिए एक मजबूत कानूनी और नीतिगत आधार प्रदान किया है। समावेशी शिक्षा को साकार करना केवल एक शैक्षिक आवश्यकता नहीं है, बल्कि एक समावेशी, न्यायपूर्ण और सशक्त समाज बनाने की दिशा में एक नैतिक अनिवार्यता और सामूहिक जिम्मेदारी है।

चर्चा के लिए प्रश्न (Discussion Questions):

  1. "समावेश सिर्फ कक्षा में बैठने से कहीं अधिक है।" इस कथन को अपने शब्दों में स्पष्ट करते हुए बताएँ कि पूर्ण समावेश के लिए क्या-क्या आवश्यक है?
  2. समावेश के सिद्धांतों में से आप किसे सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं और क्यों? कक्षा में इस सिद्धांत को कैसे लागू किया जा सकता है?
  3. एकीकरण (Integration) और समावेशी शिक्षा (Inclusive Education) के बीच मुख्य अंतर एक उदाहरण देकर समझाइए। क्यों समावेशी दृष्टिकोण अधिक प्रभावी माना जाता है?
  4. आपके विचार में, भारतीय स्कूलों में समावेशी शिक्षा को लागू करने की सबसे बड़ी बाधा क्या है? उसे दूर करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?
  5. भारत के शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) और दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम (RPWD 2016) समावेशी शिक्षा को कैसे सक्षम बनाते हैं? इन कानूनों की सफलता के लिए किन कारकों पर निर्भर करता है?
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