परिवार और विकलांगता: एक गहन भावनात्मक यात्रा और सशक्तिकरण
विषय-सूची
- 2.1 विकलांगता वाले बच्चे के होने पर प्रतिक्रिया के चरण, प्रभाव और सामना करने के तरीके
- 2.2 निदान, सहायक उपकरणों (Aids) के फिटिंग और विकलांगता की स्वीकृति में माता-पिता को शामिल करना
- 2.3 हस्तक्षेप प्रथाओं (Interventional Practices) में परिवार की भागीदारी और हिमायत (Advocacy) का महत्व
- 2.4 परिवार सशक्तिकरण (Family Empowerment) की अवधारणा, घटक और रणनीतियाँ
- 2.5 हस्तक्षेप प्रथाओं के लिए साझेदारी (Partnering for Interventional Practices)
अध्याय 2: परिवार और विकलांगता
परिचय:
किसी भी परिवार के लिए यह जानना कि उनके बच्चे में विकलांगता है, एक गहन भावनात्मक यात्रा की शुरुआत होती है। यह अध्याय इस बात पर प्रकाश डालता है कि परिवार इस खबर को कैसे संभालते हैं, विकलांगता का निदान और स्वीकृति में उनकी भूमिका क्यों महत्वपूर्ण है, और कैसे परिवार को सशक्त बनाकर और उनके साथ साझेदारी करके ही बच्चे के लिए प्रभावी हस्तक्षेप संभव हो पाता है।
2.1 विकलांगता वाले बच्चे के होने पर प्रतिक्रिया के चरण, प्रभाव और सामना करने के तरीके
जब परिवार को पता चलता है कि उनके बच्चे में विकलांगता है, तो वे अक्सर भावनाओं के विभिन्न चरणों से गुजरते हैं। ये चरण रेखीय (एक के बाद एक) नहीं होते और हर परिवार का अनुभव अलग होता है:
- झटका और इनकार (Shock and Denial):
- प्रतिक्रिया: पहली प्रतिक्रिया अक्सर सुन्न कर देने वाला झटका, अविश्वास या इनकार ("ऐसा नहीं हो सकता!", "डॉक्टर गलत होंगे!") होती है।
- प्रभाव: परिवार स्थिति की वास्तविकता को स्वीकार नहीं पाता, जरूरी कदम नहीं उठाता।
- सामना (Coping): इस चरण में भावनात्मक समर्थन (दोस्त, परिवार, काउंसलर) सबसे ज्यादा जरूरी होता है। धीरे-धीरे जानकारी जुटाना शुरू करना।
- दुःख और शोक (Sadness and Grief):
- प्रतिक्रिया: परिवार उस "आदर्श बच्चे" के लिए शोक मनाता है जिसकी उन्होंने कल्पना की थी। गहरा दुख, रोना, उदासी, अकेलापन महसूस होना आम है।
- प्रभाव: निराशा, ऊर्जा की कमी, दैनिक कामों में मन न लगना।
- सामना: दुख को स्वीकार करना और उसे व्यक्त करने देना महत्वपूर्ण है। सहानुभूति और भावनात्मक समर्थन, शोक प्रक्रिया को समझना।
- क्रोध और अपराधबोध (Anger and Guilt):
- प्रतिक्रिया: "यह मेरे साथ क्यों हुआ?", "भगवान ने यह क्यों किया?" जैसा क्रोध। माता-पिता खुद को या एक-दूसरे को दोष दे सकते हैं ("शायद गर्भ में कुछ गलत खा लिया", "हमारे कर्म खराब थे")। गहरा अपराधबोध होना।
- प्रभाव: रिश्तों में तनाव, समाज या चिकित्सा प्रणाली के प्रति नाराजगी।
- सामना: क्रोध को स्वस्थ तरीके से व्यक्त करने के रास्ते ढूँढना (जैसे बातचीत करना, व्यायाम करना)। यह समझना कि ये भावनाएँ सामान्य हैं और इनका कोई तार्किक आधार नहीं है। काउंसलिंग से मदद मिल सकती है।
- मोलभाव करना और अलगाव (Bargaining and Withdrawal):
- प्रतिक्रिया: कभी-कभी परिवार "अगर हम यह कर लें तो बच्चा ठीक हो जाएगा" जैसी सोच के साथ मोलभाव करने लगते हैं। या फिर शर्म, भय या थकान के कारण खुद को सामाजिक रूप से अलग-थलग कर लेते हैं।
- प्रभाव: अवास्तविक उम्मीदें पालना, समर्थन प्रणाली से कट जाना।
- सामना: वास्तविकता को स्वीकारने की दिशा में बढ़ना। दूसरे परिवारों से जुड़ना जो समान अनुभव साझा करते हों।
- स्वीकृति और समायोजन (Acceptance and Adjustment):
- प्रतिक्रिया: यह अंतिम चरण नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है। परिवार बच्चे की विकलांगता को उसकी पूरी पहचान के रूप में नहीं, बल्कि उसका एक हिस्सा मानने लगता है। वे बच्चे की ताकत पर ध्यान केंद्रित करना और उसकी जरूरतों को पूरा करने के तरीके खोजना शुरू करते हैं।
- प्रभाव: व्यावहारिक समाधानों पर ध्यान, सकारात्मक दृष्टिकोण, बच्चे और परिवार दोनों के लिए बेहतर जीवन की गुणवत्ता।
- सामना: जानकारी और संसाधनों की तलाश करना। बच्चे के लिए उपलब्ध सेवाओं (चिकित्सा, शैक्षिक, सामुदायिक) का उपयोग करना। दूसरे परिवारों और सहायता समूहों से जुड़ना। अपने बच्चे के साथ खुशियाँ मनाना सीखना।
सारांश: विकलांगता के साथ जीवन जीने वाले बच्चे के परिवार के लिए यह भावनात्मक यात्रा चुनौतीपूर्ण होती है, जिसमें झटका, दुःख, क्रोध जैसी भावनाएँ आती हैं। धीरे-धीरे स्वीकृति और समायोजन की ओर बढ़ना महत्वपूर्ण है। भावनात्मक समर्थन, सटीक जानकारी और अन्य परिवारों से जुड़ाव इस प्रक्रिया को सहज बनाने में मदद करते हैं। हर परिवार की गति अलग होती है और यह ठीक है।
2.2 निदान, सहायक उपकरणों (Aids) के फिटिंग और विकलांगता की स्वीकृति में माता-पिता को शामिल करना
माता-पिता की सक्रिय भागीदारी बच्चे के कल्याण और विकास की दिशा में पहला कदम है:
- निदान प्रक्रिया में शामिल करना (Involvement in Diagnosis):
- सम्मानजनक संवाद: डॉक्टरों और विशेषज्ञों को संवेदनशील तरीके से, स्पष्ट भाषा में और पर्याप्त समय देकर निदान की जानकारी देनी चाहिए। माता-पिता की भावनाओं और सवालों के लिए जगह होनी चाहिए।
- माता-पिता की जानकारी को महत्व देना: माता-पिता बच्चे के व्यवहार, विकास और दिनचर्या के बारे में अनूठी जानकारी रखते हैं। निदान में उनकी बातों और चिंताओं को गंभीरता से सुनना और शामिल करना जरूरी है।
- साफ़ जानकारी और स्पष्टता: निदान क्या है, इसका क्या मतलब है, आगे क्या कदम उठाए जा सकते हैं - इसकी पूरी और सटीक जानकारी देना। चिकित्सा शब्दजाल से बचना।
- भावनात्मक समर्थन प्रदान करना: निदान के समय मनोसामाजिक सहायता या काउंसलिंग की पेशकश करना।
- सहायक उपकरणों (Aids और Appliances) के चयन और फिटिंग में शामिल करना:
- जरूरतों का आकलन: कौन सा उपकरण (जैसे श्रवण यंत्र, व्हीलचेयर, ब्रेस, विशेष बैठने की व्यवस्था, संचार उपकरण) सबसे उपयुक्त होगा, यह तय करने में माता-पिता और बच्चे (यदि संभव हो) की राय और जरूरतों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
- विकल्पों की जानकारी: विभिन्न उपकरणों के प्रकार, लाभ-हानि, लागत और रखरखाव के बारे में पूरी जानकारी देना।
- प्रशिक्षण और समर्थन: उपकरण का सही तरीके से उपयोग, देखभाल और समस्या निवारण के लिए माता-पिता और बच्चे को प्रशिक्षित करना। फिटिंग के बाद लगातार फॉलो-अप और समायोजन की सुविधा देना।
- वित्तीय मार्गदर्शन: उपकरणों की खरीद या प्राप्ति के लिए उपलब्ध वित्तीय सहायता योजनाओं (सरकारी या गैर-सरकारी) के बारे में बताना।
- विकलांगता की स्वीकृति में परिवार का साथ देना (Supporting Family Acceptance):
- बिना शर्त प्यार और समर्थन: यह स्पष्ट करना कि बच्चे की विकलांगता उसके प्रति उनके प्यार और मूल्य को कम नहीं करती।
- सकारात्मक फोकस: बच्चे की कमियों के बजाय उसकी क्षमताओं, प्रगति और अनूठे गुणों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करना।
- शिक्षा और जागरूकता: विकलांगता के बारे में सटीक जानकारी देना ताकि डर और गलतफहमियाँ दूर हों। यह समझाना कि विकलांगता जीवन का अंत नहीं है।
- सहकर्मी समर्थन (Peer Support): ऐसे अन्य परिवारों से मिलवाना जिनके समान अनुभव हैं। सहायता समूहों (Support Groups) से जोड़ना। यह स्वीकृति और सामना करने की ताकत देता है।
- पेशेवर परामर्श: जरूरत पड़ने पर परिवार परामर्श (Family Counseling) की सुविधा उपलब्ध कराना ताकि वे अपनी भावनाओं को संसाधित कर सकें और स्वस्थ तरीके से आगे बढ़ सकें।
- समय देना: स्वीकृति एक प्रक्रिया है, एक घटना नहीं। परिवार को अपनी गति से इस यात्रा से गुजरने का समय और स्थान देना जरूरी है।
सारांश: निदान से लेकर सहायक उपकरणों के उपयोग और विकलांगता की स्वीकृति तक, हर कदम पर माता-पिता को सक्रिय रूप से शामिल करना और उनका समर्थन करना बेहद जरूरी है। सम्मानजनक संवाद, पूरी जानकारी, प्रशिक्षण और भावनात्मक सहयोग परिवार को सशक्त बनाता है और बच्चे के लिए सर्वोत्तम परिणामों की नींव रखता है।
2.3 हस्तक्षेप प्रथाओं (Interventional Practices) में परिवार की भागीदारी और हिमायत (Advocacy) का महत्व
बच्चे के विकास और प्रगति के लिए हस्तक्षेप (जैसे चिकित्सा उपचार, विशेष शिक्षा, व्यावसायिक चिकित्सा, भाषण चिकित्सा) अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनमें परिवार की भूमिका अहम है:
- भागीदारी का महत्व (Importance of Involvement):
- सर्वोत्तम परिणाम: शोध बताते हैं कि जब परिवार हस्तक्षेप में सक्रिय रूप से शामिल होते हैं, तो बच्चे की प्रगति तेज और अधिक स्थायी होती है। घर पर हस्तक्षेप जारी रखना प्रभावशीलता बढ़ाता है।
- बच्चे की जानकारी: परिवार बच्चे की दिनचर्या, पसंद-नापसंद, व्यवहार के पैटर्न और घर पर की गई प्रगति के बारे में अनमोल जानकारी दे सकता है, जो हस्तक्षेप को अधिक प्रासंगिक बनाती है।
- लक्ष्यों की प्रासंगिकता: परिवार की इनपुट के साथ तय किए गए लक्ष्य (IFSP/IEP में) बच्चे और परिवार की वास्तविक जीवन जरूरतों और प्राथमिकताओं से जुड़े होते हैं।
- निरंतरता: हस्तक्षेप सिर्फ थेरेपी सत्र या स्कूल तक सीमित नहीं होता। परिवार ही घर और समुदाय में सीखे गए कौशलों को लागू करने और अभ्यास कराने का मौका देता है।
- बच्चे के आत्मविश्वास में वृद्धि: जब बच्चा देखता है कि उसके माता-पिता उसके हस्तक्षेप में शामिल हैं और उसे प्रोत्साहित करते हैं, तो उसका आत्मविश्वास और प्रेरणा बढ़ती है।
- हिमायत (Advocacy) का महत्व:
- बच्चे की आवाज बनना: परिवार ही बच्चे की सबसे मजबूत और स्थायी आवाज है, खासकर तब जब बच्चा खुद अपनी जरूरतें व्यक्त नहीं कर सकता। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि बच्चे की जरूरतों और अधिकारों को सुना और पूरा किया जा रहा है।
- उचित सेवाओं तक पहुँच: परिवार को अक्सर विभिन्न सेवा प्रदाताओं (डॉक्टर, थेरेपिस्ट, शिक्षक, सरकारी विभाग) के साथ वार्ता करके बच्चे के लिए जरूरी सेवाएँ (जैसे विशेष उपकरण, कक्षा में सहायता, चिकित्सा सत्र) प्राप्त करनी पड़ती है।
- IFSP/IEP में सक्रिय भूमिका: बैठकों में भाग लेकर, बच्चे की ताकत और जरूरतों पर जोर देकर, उचित लक्ष्यों और सेवाओं की माँग करके परिवार हिमायत करता है।
- प्रणालीगत बदलाव: अनुभवी परिवार अक्सर व्यापक स्तर पर बदलाव लाने के लिए हिमायत करते हैं - जैसे स्कूलों में समावेशन को बेहतर बनाना, सामुदायिक सुविधाओं को सुलभ बनाना, या विकलांगता अधिकारों से जुड़ी नीतियों को प्रभावित करना।
- अधिकारों के बारे में जागरूकता: हिमायत करने के लिए परिवार को बच्चे और अपने कानूनी अधिकारों, उपलब्ध संसाधनों और सेवाओं के बारे में जानकारी होना जरूरी है।
सारांश: परिवार की सक्रिय भागीदारी हस्तक्षेप को बच्चे की दैनिक जिंदगी से जोड़ती है और उसकी सफलता की कुंजी है। हिमायत यह सुनिश्चित करती है कि बच्चे को उसकी जरूरतों के अनुसार गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ और अवसर मिलें। एक सूचित, सशक्त और सक्रिय परिवार ही बच्चे के लिए सबसे बड़ा वकील और समर्थक होता है।
2.4 परिवार सशक्तिकरण (Family Empowerment) की अवधारणा, घटक और रणनीतियाँ
अवधारणा (Concept): परिवार सशक्तिकरण का मतलब है परिवारों को ज्ञान, कौशल, संसाधन और आत्मविश्वास से लैस करना ताकि वे अपने विकलांग बच्चे की जरूरतों को प्रभावी ढंग से पूरा करने में सक्षम बन सकें, उसके लिए निर्णय ले सकें और उसके अधिकारों के लिए हिमायत कर सकें। यह उन्हें निर्भर बनाने के बजाय स्वावलंबी और सक्षम बनाने पर केंद्रित है।
घटक (Components):
- ज्ञान और सूचना (Knowledge & Information): विकलांगता के बारे में सटीक जानकारी, उपलब्ध सेवाओं और संसाधनों का पता, कानूनी अधिकारों की समझ, हस्तक्षेप के तरीके।
- कौशल विकास (Skill Development): बच्चे की देखभाल के लिए जरूरी कौशल (जैसे व्यवहार प्रबंधन, संचार तकनीकें, चिकित्सकीय प्रक्रियाएँ), हिमायत करने के कौशल, संसाधनों तक पहुँच बनाने के कौशल।
- आत्मविश्वास और आत्म-प्रभावकारिता (Confidence & Self-Efficacy): यह विश्वास कि वे अपने बच्चे के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं, चुनौतियों का सामना कर सकते हैं और निर्णय लेने में सक्षम हैं।
- नियंत्रण और निर्णय लेने की शक्ति (Control & Decision-Making Power): अपने बच्चे के जीवन और उसकी देखभाल से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णयों में सक्रिय भागीदारी और अंतिम नियंत्रण रखना।
- सामाजिक समर्थन नेटवर्क (Social Support Network): परिवार, दोस्तों, अनुभवी माता-पिता (सहकर्मी समर्थन), सहायता समूहों, पेशेवरों और सामुदायिक संसाधनों से जुड़ा मजबूत नेटवर्क।
- आत्म-हिमायत और बच्चे की हिमायत (Self-Advocacy & Child Advocacy): अपनी और अपने बच्चे की जरूरतों को प्रभावी ढंग से व्यक्त करने और उन्हें पूरा करवाने की क्षमता।
रणनीतियाँ (Strategies):
- परिवार-केंद्रित सेवाएँ (Family-Centered Services): सभी सेवाएँ परिवार की जरूरतों, प्राथमिकताओं और शक्तियों को ध्यान में रखकर डिजाइन की जानी चाहिए। परिवार को निर्णय लेने में समान भागीदार माना जाना चाहिए।
- क्षमता निर्माण प्रशिक्षण (Capacity Building Training): परिवारों को जानकारी, कौशल और हिमायत करने के तरीके सिखाने के लिए वर्कशॉप, प्रशिक्षण सत्र और साक्षरता कार्यक्रम आयोजित करना।
- सहकर्मी सहायता और सलाह (Peer Support & Mentoring): अनुभवी माता-पिता द्वारा नए या संघर्ष कर रहे परिवारों को सलाह, मार्गदर्शन और भावनात्मक समर्थन देना। सहायता समूह बनाना।
- सूचना का सुलभ प्रसार (Accessible Information Dissemination): सरल भाषा में, स्थानीय बोली में, विभिन्न प्रारूपों में (लिखित, ऑडियो, दृश्य) जानकारी उपलब्ध कराना। रिसोर्स गाइड्स बनाना।
- सशक्तिकरण के लिए परामर्श (Empowerment-Oriented Counseling): ऐसी काउंसलिंग जो परिवार की ताकत को पहचाने, उनके आत्मविश्वास को बढ़ाए और स्वतंत्र निर्णय लेने में उनकी मदद करे।
- संसाधनों से जोड़ना (Resource Linking): परिवारों को वित्तीय सहायता, कानूनी सहायता, चिकित्सा सेवाओं, शैक्षिक संसाधनों और सामुदायिक कार्यक्रमों से जोड़ने में मदद करना।
- परिवार नेतृत्व के अवसर (Family Leadership Opportunities): परिवारों को स्कूल समितियों, नीति निर्माण फोरम, या सेवा वितरण कार्यक्रमों में नेतृत्व की भूमिकाएँ देकर उनकी आवाज को प्रभावी बनाना।
सारांश: परिवार सशक्तिकरण एक सक्रिय प्रक्रिया है जिसका लक्ष्य परिवारों को सिर्फ मदद पाने वाला नहीं, बल्कि अपने बच्चे के जीवन का नेतृत्व करने वाला सक्षम एजेंट बनाना है। ज्ञान, कौशल, आत्मविश्वास, नियंत्रण और समर्थन नेटवर्क इसके मुख्य स्तंभ हैं। परिवार-केंद्रित दृष्टिकोण, प्रशिक्षण, सहकर्मी सहायता और सूचना तक पहुँच जैसी रणनीतियों से परिवारों को सशक्त किया जा सकता है, जिसका सीधा लाभ बच्चे के विकास और कल्याण को मिलता है।
2.5 हस्तक्षेप प्रथाओं के लिए साझेदारी (Partnering for Interventional Practices)
बच्चे के लिए सफल और स्थायी परिणाम पाने के लिए, सभी हितधारकों के बीच मजबूत साझेदारी जरूरी है। यह एक टीम का काम है:
- साझेदारों की पहचान (Key Partners):
- परिवार (माता-पिता/अभिभावक और विस्तारित परिवार): केंद्रीय और सबसे महत्वपूर्ण साझेदार।
- बच्चा (Child): जहाँ तक संभव हो, उम्र और क्षमता के अनुसार बच्चे को भी निर्णयों में शामिल करना चाहिए।
- शिक्षक और स्कूल स्टाफ: कक्षा शिक्षक, विशेष शिक्षा शिक्षक, प्रिंसिपल, परामर्शदाता।
- चिकित्सा और पुनर्वास पेशेवर: डॉक्टर, भाषण चिकित्सक (Speech Therapist), व्यावसायिक चिकित्सक (Occupational Therapist), फिजियोथेरेपिस्ट, मनोवैज्ञानिक।
- समाज सेवक और केस मैनेजर (Social Worker/Case Manager): संसाधनों से जोड़ने और समन्वय में मदद करते हैं।
- सामुदायिक सेवा प्रदाता: थेरेपी सेंटर, आरईआई (रिसोर्स सेंटर फॉर एडूकेशन ऑफ द डिसेबल्ड), गैर-सरकारी संगठन (NGOs)।
- सहकर्मी और दोस्त: बच्चे के सामाजिक समावेशन में महत्वपूर्ण।
- प्रभावी साझेदारी के सिद्धांत (Principles of Effective Partnership):
- पारस्परिक सम्मान और विश्वास: सभी भागीदार एक-दूसरे के ज्ञान, अनुभव और योगदान का सम्मान करें।
- समान भागीदारी: परिवार को बराबर का और केंद्रीय भागीदार माना जाए। उनकी राय और निर्णयों को महत्व दिया जाए।
- खुला और ईमानदार संचार: नियमित रूप से, स्पष्ट और सम्मानजनक तरीके से जानकारी साझा करना। अच्छी बातों के साथ चुनौतियों पर भी खुलकर चर्चा करना।
- साझा लक्ष्य और उत्तरदायित्व: बच्चे और परिवार की प्राथमिकताओं पर आधारित साझा लक्ष्य तय करना और उन्हें प्राप्त करने की जिम्मेदारी बाँटना।
- लचीलापन और सहयोग: परिवार की जरूरतों और परिस्थितियों के अनुसार हस्तक्षेप योजनाओं को लचीला बनाना और आपसी सहयोग से काम करना।
- निरंतरता: साझेदारी एक बार की घटना नहीं, बल्कि बच्चे के विकास के साथ चलने वाली सतत प्रक्रिया है।
- साझेदारी के व्यावहारिक पहलू (Practical Aspects):
- IFSP/IEP बैठकें: ये टीम साझेदारी का औपचारिक मंच हैं। सभी भागीदारों को आमंत्रित किया जाना चाहिए और उनकी बात सुनी जानी चाहिए।
- नियमित संचार: ईमेल, फोन कॉल, कम्युनिकेशन डायरी, ऐप्स, नियमित छोटी मीटिंग्स के माध्यम से जानकारी साझा करना और प्रगति पर चर्चा करना।
- जानकारी साझा करने के लिए सहमति: गोपनीयता बनाए रखते हुए, बच्चे के बारे में प्रासंगिक जानकारी सभी जरूरी भागीदारों के साथ साझा करने के लिए परिवार से लिखित सहमति लेना।
- संयुक्त प्रशिक्षण सत्र: जहाँ शिक्षक और माता-पिता एक साथ किसी विशेष तकनीक या रणनीति पर प्रशिक्षण ले सकें।
- घर और स्कूल में एकरूपता: घर और स्कूल में व्यवहार प्रबंधन, संचार तकनीकों या सीखने के तरीकों में समानता होने से बच्चे को लाभ होता है। इसके लिए साझेदारों का समन्वय जरूरी है।
- समुदाय में समन्वय: सामुदायिक सेवाओं (जैसे थेरेपी, मनोरंजन कार्यक्रम) और स्कूल के बीच समन्वय स्थापित करना।
सारांश: विकलांगता वाले बच्चे के लिए प्रभावी हस्तक्षेप तभी संभव है जब परिवार, शिक्षक, चिकित्सक और अन्य पेशेवर एक टीम के रूप में काम करें। इस साझेदारी का आधार सम्मान, विश्वास, खुला संवाद, साझा लक्ष्य और परिवार की केंद्रीय भूमिका है। नियमित संचार, सहयोग और समन्वय के माध्यम से ही बच्चे की पूरी क्षमता को साकार करने का मार्ग प्रशस्त होता है। साझेदारी ही सफलता की कुंजी है।
निष्कर्ष:
इस अध्याय ने दिखाया कि विकलांग बच्चे के साथ जीवन यापन करने वाले परिवार की यात्रा भावनात्मक उतार-चढ़ाव (2.1) से शुरू होती है, जहाँ निदान, सहायक उपकरणों और स्वीकृति में उनकी सक्रिय भागीदारी (2.2) महत्वपूर्ण है। हस्तक्षेप की सफलता पूरी तरह परिवार की भागीदारी और उनकी हिमायत (2.3) पर निर्भर करती है। परिवारों को सशक्त बनाना (2.4) - ज्ञान, कौशल, आत्मविश्वास और समर्थन से लैस करना - इस प्रक्रिया की आधारशिला है। अंततः, बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए परिवार, पेशेवरों और समुदाय के बीच मजबूत और सम्मानजनक साझेदारी (2.5) ही वह माध्यम है जो चुनौतियों को अवसरों में बदल सकता है और हर बच्चे को अपनी अनूठी क्षमताओं को प्रकट करने का मौका दे सकता है।