Unit 5: Evaluation in EVS and Social Science ,पर्यावरण अध्ययन (ईवीएस) एवं सामाजिक विज्ञान (एसएस) में मूल्यांकन

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अध्याय 5: पर्यावरण अध्ययन (ईवीएस) एवं सामाजिक विज्ञान (एसएस) में मूल्यांकन



पाठ्यक्रम का अध्ययन और शिक्षण प्रक्रिया तभी सार्थक होती है जब हम यह जान सकें कि छात्रों ने क्या सीखा और वे सीखने के लक्ष्यों तक कितना पहुँच पाए हैं। यही कार्य करता है मूल्यांकन (Evaluation)। ईवीएस और सामाजिक विज्ञान जैसे विषय, जहाँ ज्ञान के साथ-साथ समझ, मूल्य, कौशल और सामाजिक चेतना का विकास महत्वपूर्ण है, वहाँ मूल्यांकन की भूमिका और भी जटिल एवं महत्वपूर्ण हो जाती है। यह अध्याय हमें मूल्यांकन की अवधारणा, उसके उद्देश्यों, विभिन्न तकनीकों, प्रकारों और विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों (जैसे बधिरता) के संदर्भ में इसके समायोजन को समझने में मदद करेगा।


5.1 मूल्यांकन: अवधारणा, उद्देश्य एवं महत्व

अवधारणा (Concept):

  • मूल्यांकन शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। यह केवल परीक्षा लेकर अंक या ग्रेड देने तक सीमित नहीं है।
  • व्यापक परिभाषा: यह एक व्यवस्थित प्रक्रिया है जिसके द्वारा छात्रों के अधिगम (सीखने), विकास, व्यवहार, रुचियों, अभिवृत्तियों और उपलब्धियों के बारे में विश्वसनीय एवं वैध सूचनाएँ एकत्र की जाती हैं, उनका विश्लेषण किया जाता है और उनकी व्याख्या करके निर्णय लिए जाते हैं।
  • इसका उद्देश्य छात्रों की त्रुटियाँ ढूँढ़ना नहीं, बल्कि उनकी प्रगति को समझना, शिक्षण की प्रभावशीलता का आकलन करना और भविष्य की योजना बनाना है।
  • ईवीएस/एसएस में, यह सैद्धांतिक ज्ञान, अवधारणात्मक समझ, सामाजिक-पर्यावरणीय संवेदनशीलता, मूल्यों, विश्लेषणात्मक कौशल और व्यावहारिक अनुप्रयोग सभी का आकलन करता है।

उद्देश्य (Objectives):

  • अधिगम प्रगति जाँचना: छात्रों ने निर्धारित पाठ्यक्रम के उद्देश्यों को किस हद तक प्राप्त किया है।
  • शिक्षण प्रभावशीलता आंकना: शिक्षण विधियाँ, सामग्री और रणनीतियाँ कितनी सफल रहीं? क्या सुधार की आवश्यकता है?
  • कमजोरियाँ व शक्तियाँ पहचानना: छात्रों की व्यक्तिगत शक्तियों और कमजोर क्षेत्रों की पहचान करना ताकि उपयुक्त सहायता दी जा सके।
  • प्रतिपुष्टि (Feedback) देना: छात्रों को उनकी प्रगति और सुधार के क्षेत्रों के बारे में जानकारी देना।
  • भविष्य की योजना: मूल्यांकन के परिणामों के आधार पर शिक्षण विधियों, पाठ्यचर्या या सीखने के लक्ष्यों में आवश्यक संशोधन करना।
  • वर्गीकरण/चयन (सीमित उद्देश्य): कभी-कभी अगली कक्षा में प्रवेश या विशिष्ट कार्यक्रमों के लिए चयन का आधार (हालाँकि रचनात्मक मूल्यांकन का मुख्य ध्यान यह नहीं है)।
  • रिपोर्टिंग: अभिभावकों और अन्य हितधारकों को छात्र की प्रगति के बारे में सूचित करना।
  • छात्रों को प्रेरित करना: उचित मूल्यांकन छात्रों को सीखने के लिए प्रेरित कर सकता है।

महत्व (Significance):

  • शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को दिशा देता है: यह शिक्षक और छात्र दोनों को बताता है कि कहाँ खड़े हैं और आगे क्या करना है।
  • व्यक्तिगत विभिन्नताओं को समझने में सहायक: प्रत्येक छात्र अलग गति और तरीके से सीखता है। मूल्यांकन इस बात को ध्यान में रखने में मदद करता है।
  • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करता है: निरंतर मूल्यांकन शिक्षण की गुणवत्ता बनाए रखने और सुधारने में मदद करता है।
  • छात्रों की बहुआयामी प्रगति का आकलन: ईवीएस/एसएस में ज्ञान, समझ, कौशल, अभिवृत्ति और मूल्य सभी का आकलन संभव हो पाता है।
  • उपचारात्मक शिक्षण का आधार: कमजोर छात्रों की विशिष्ट समस्याओं की पहचान करके उनके लिए उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था करना।
  • पाठ्यक्रम विकास में योगदान: मूल्यांकन के निष्कर्ष पाठ्यक्रम के संशोधन और विकास के लिए मूल्यवान इनपुट प्रदान करते हैं।
  • जवाबदेही सुनिश्चित करता है: यह शिक्षकों और शैक्षणिक संस्थानों को छात्र सीखने के प्रति जवाबदेह बनाता है।

5.2 मूल्यांकन की तकनीकें (Techniques of Evaluation)

मूल्यांकन केवल लिखित परीक्षाओं तक सीमित नहीं है। ईवीएस और एसएस जैसे विषयों के बहुआयामी उद्देश्यों को मापने के लिए विविध तकनीकों की आवश्यकता होती है। इन्हें मोटे तौर पर दो वर्गों में बाँटा जा सकता है:

1. पारंपरिक/मानकीकृत तकनीकें (Traditional/Standardized Techniques):

  • लिखित परीक्षाएँ (Written Examinations): वस्तुनिष्ठ प्रश्न (बहुविकल्पीय, सत्य-असत्य, रिक्त स्थान भरना), अति लघु उत्तरीय प्रश्न, लघु उत्तरीय प्रश्न, दीर्घ उत्तरीय प्रश्न। ज्ञान और समझ के परीक्षण के लिए उपयोगी।
  • मौखिक परीक्षाएँ (Oral Examinations/ Viva): छात्रों की अवधारणात्मक समझ, तर्कशक्ति और अभिव्यक्ति क्षमता का आकलन।
  • घरेलू कार्य/प्रोजेक्ट्स (Home Assignments/Projects): स्वतंत्र अध्ययन, शोध कौशल, लेखन क्षमता और विषय की गहरी समझ का आकलन करते हैं (जैसे - स्थानीय जल स्रोत पर प्रोजेक्ट, स्वतंत्रता सेनानी पर रिपोर्ट)।

2. वैकल्पिक/अनौपचारिक तकनीकें (Alternative/Informal Techniques):

इन पर अधिक जोर दिया जा रहा है क्योंकि ये निरंतर और व्यापक आकलन की अनुमति देती हैं।

  • अवलोकन (Observation): शिक्षक कक्षा में, समूह चर्चा में, प्रयोग करते समय या खेल के मैदान में छात्रों के व्यवहार, भागीदारी, सामाजिक संपर्क, रुचि और कौशल का व्यवस्थित रूप से अवलोकन करता है और रिकॉर्ड रखता है (एनेकडोटल रिकॉर्ड, चेकलिस्ट, रेटिंग स्केल का उपयोग करके)।
  • मौखिक प्रश्नोत्तरी (Oral Questioning): कक्षा शिक्षण के दौरान छात्रों की तत्काल प्रतिक्रिया, समझ और विचार प्रक्रिया को जानने के लिए विभिन्न स्तर के प्रश्न पूछना।
  • क्विज़ (Quizzes): छोटे, अनौपचारिक परीक्षण जो विशिष्ट विषयवस्तु पर ज्ञान और समझ का त्वरित आकलन करते हैं।
  • चर्चा एवं वाद-विवाद (Discussion & Debate): छात्रों की तर्कशक्ति, आलोचनात्मक चिंतन, विचारों की अभिव्यक्ति और दूसरों के विचारों को सुनने की क्षमता का आकलन।
  • प्रदर्शन आधारित आकलन (Performance-Based Assessment): छात्रों से वास्तविक दुनिया के कार्यों या सिमुलेशन को करके दिखाने को कहा जाता है।
    • प्रस्तुतीकरण (Presentations): किसी विषय पर जानकारी प्रस्तुत करना।
    • भूमिका निर्वाह (Role Play): ऐतिहासिक घटनाओं या सामाजिक स्थितियों का अभिनय करना।
    • प्रयोग एवं प्रदर्शन (Experiments & Demonstrations): ईवीएस में वैज्ञानिक प्रक्रियाओं को करके दिखाना।
    • मॉडल/चार्ट/पोस्टर निर्माण (Model/Chart/Poster Making): रचनात्मकता और विषय की समझ को दर्शाना।
    • पोर्टफोलियो (Portfolio): छात्र के कार्यों (लिखित, कलात्मक, परियोजना रिपोर्ट, स्व-मूल्यांकन, शिक्षक टिप्पणियाँ) का क्रमिक संग्रह जो उसकी प्रगति और उपलब्धियों को दर्शाता है। यह बहुत शक्तिशाली तकनीक है।
  • स्व-मूल्यांकन एवं सहकर्मी मूल्यांकन (Self-Assessment & Peer Assessment): छात्र अपने स्वयं के कार्य या सहपाठियों के कार्य का मूल्यांकन पूर्व निर्धारित मानदंडों के आधार पर करते हैं। यह आत्म-जागरूकता और आलोचनात्मक चिंतन विकसित करता है।
  • प्रश्नावली एवं साक्षात्कार (Questionnaires & Interviews): छात्रों की रुचियों, अभिवृत्तियों और मूल्यों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए।

5.3 रचनात्मक, योगात्मक एवं सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (Formative, Summative and Continuous and Comprehensive Evaluation - CCE)

रचनात्मक मूल्यांकन (Formative Assessment - FA):

  • अर्थ: यह शिक्षण प्रक्रिया के दौरान किया जाने वाला निरंतर मूल्यांकन है। इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों की प्रगति की निगरानी करना, कमियों की पहचान करना और उन्हें तत्काल प्रतिपुष्टि देना है ताकि सीखने में सुधार हो सके।
  • उद्देश्य: सीखने में सुधार करना, शिक्षण को सूचित करना।
  • समय: शिक्षण के दौरान और उसके तुरंत बाद (उदा., कक्षा प्रश्नोत्तरी, कक्षा में अवलोकन, घरेलू कार्य की समीक्षा, छोटी प्रस्तुतियाँ)।
  • प्रकृति: निदानात्मक (Diagnostic), सुधारात्मक (Remedial)। ग्रेडिंग पर कम, सीखने पर अधिक ध्यान।
  • ईवीएस/एसएस में उदाहरण: किसी पर्यावरणीय समस्या पर कक्षा चर्चा में भागीदारी, स्थानीय इतिहास पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट, किसी सामाजिक मुद्दे पर भूमिका निर्वाह।

योगात्मक मूल्यांकन (Summative Assessment - SA):

  • अर्थ: यह शिक्षण की एक इकाई या पाठ्यक्रम के अंत में किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों की उपलब्धि का आकलन करना और अंतिम ग्रेड या रिपोर्ट कार्ड देना है। यह बताता है कि छात्र ने अंततः कितना सीखा।
  • उद्देश्य: उपलब्धि को प्रमाणित करना, ग्रेड देना, अगली कक्षा/कार्यक्रम में प्रवेश का आधार बनाना।
  • समय: इकाई/अवधि/पाठ्यक्रम के अंत में (उदा., अर्धवार्षिक/वार्षिक परीक्षा, अंतिम प्रोजेक्ट प्रस्तुति)।
  • प्रकृति: निर्णायक (Judgmental), प्रमाणनात्मक (Certifying)। परिणामों का भारी महत्व।
  • ईवीएस/एसएस में उदाहरण: वार्षिक परीक्षा, सेमेस्टर अंत की परियोजना रिपोर्ट।

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Evaluation - CCE):

  • अर्थ: यह एक दर्शन और व्यवस्था है जो रचनात्मक और योगात्मक दोनों मूल्यांकनों को समाहित करती है, लेकिन इनसे आगे बढ़कर है। इसके दो मुख्य स्तंभ हैं:
    • सतत (Continuous): मूल्यांकन शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का नियमित और निरंतर अंग है। यह केवल परीक्षाओं तक सीमित नहीं है। रचनात्मक मूल्यांकन इसी का हिस्सा है।
    • व्यापक (Comprehensive): मूल्यांकन छात्र के विकास के सभी पहलुओं को शामिल करता है:
      • ज्ञानात्मक (Cognitive): ज्ञान, समझ, अनुप्रयोग, विश्लेषण आदि (पारंपरिक विषय ज्ञान)।
      • मनोक्रियात्मक (Psychomotor): कौशल (प्रायोगिक कौशल, प्रस्तुतीकरण कौशल, मॉडल बनाना, सर्वेक्षण करना आदि)।
      • भावात्मक (Affective): अभिवृत्तियाँ, मूल्य, रुचियाँ, सामाजिक कौशल, भावनात्मक विकास।
  • उद्देश्य: छात्र के समग्र व्यक्तित्व विकास का आकलन करना, शिक्षण को सतत सूचित करना, केवल अकादमिक उपलब्धि पर नहीं बल्कि जीवन कौशल और मूल्यों पर भी ध्यान देना।
  • विधियाँ: पारंपरिक और वैकल्पिक सभी तकनीकों का समावेश (अवलोकन, प्रश्नोत्तरी, प्रोजेक्ट, पोर्टफोलियो, प्रस्तुतियाँ, चर्चाएँ, स्व-मूल्यांकन, सहकर्मी मूल्यांकन, लिखित परीक्षाएँ)।
  • ईवीएस/एसएस में प्रासंगिकता: ये विषय जीवन से सीधे जुड़े होने के कारण सीसीई के लिए आदर्श हैं। एक छात्र के पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता (भावात्मक), स्थानीय सर्वेक्षण करने की क्षमता (मनोक्रियात्मक) और परिणामों का विश्लेषण (ज्ञानात्मक) सभी का व्यापक आकलन किया जा सकता है।

5.4 बधिरता की सीमाओं के कारण मूल्यांकन में समायोजन (Adjustments in evaluation due to limitations of deafness)

बधिर छात्रों के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया को निष्पक्ष और सार्थक बनाने के लिए समायोजन आवश्यक हैं। इनका उद्देश्य भाषा या श्रवण बाधा को सीखने की क्षमता के मूल्यांकन में बाधा न बनने देना है:

भाषा और संचार पर ध्यान:

  • स्पष्ट और सरल भाषा: प्रश्नों और निर्देशों को सरल, स्पष्ट और संक्षिप्त वाक्यों में लिखा जाना चाहिए। जटिल भाषाई संरचनाओं से बचना चाहिए।
  • दृश्य सहायक सामग्री (Visual Aids): चित्रों, आरेखों, चार्ट्स, फ्लोचार्ट्स, मानचित्रों, टाइमलाइन्स का व्यापक उपयोग। प्रश्नों को समझने में ये सहायक होते हैं।
  • संकेत भाषा दुभाषिया (Sign Language Interpreter): यदि छात्र संकेत भाषा पर निर्भर है, तो परीक्षा निर्देशों और मौखिक घटकों (यदि कोई हो) के लिए योग्य दुभाषिया की व्यवस्था करना।
  • लेखन सहायता (Scribe): यदि छात्र की लेखन गति धीमी है या भाषा लिखने में कठिनाई है, तो उसके उत्तर लिखने के लिए एक सहायक (स्क्राइब) उपलब्ध कराना। स्क्राइब को छात्र की भाषा (संकेत या लिखित) में दक्ष होना चाहिए।
  • वैकल्पिक प्रतिक्रिया विधियाँ: लिखित उत्तरों के अलावा, चित्र बनाना, आरेखण करना, मॉडल बनाना, प्रदर्शन करना या प्रस्तुतीकरण देना जैसे विकल्प देना।

परीक्षा का वातावरण और संरचना:

  • अतिरिक्त समय (Extra Time): प्रश्नों को पढ़ने, संकेत भाषा में सोचने या लिखित उत्तर देने में अधिक समय लग सकता है। पर्याप्त अतिरिक्त समय देना आवश्यक है।
  • विराम (Breaks): लंबी परीक्षाओं में बीच-बीच में छोटे विराम देना, क्योंकि सतत संकेत भाषा व्याख्या या लिखित सामग्री पढ़ना थकाऊ हो सकता है।
  • शोर मुक्त वातावरण: एकांत और शांत कमरा जहाँ छात्र ध्यान केंद्रित कर सके और दुभाषिया के संकेत स्पष्टता से देख सके।
  • रौशनी (Lighting): दुभाषिया के हाथों और चेहरे के भावों को स्पष्ट रूप से देखने के लिए उचित रोशनी की व्यवस्था।

मूल्यांकन के तरीके:

  • मौखिक परीक्षा से बचाव या समायोजन: यदि मौखिक परीक्षा अनिवार्य है, तो संकेत भाषा दुभाषिया का उपयोग करना या लिखित प्रश्नोत्तरी पर जोर देना।
  • सुनने के कौशल के आकलन में लचीलापन: ईवीएस/एसएस में सुनने के कार्यों (जैसे ऑडियो क्लिप) को अन्य तरीकों से बदलना या छोड़ देना।
  • प्रदर्शन और प्रोजेक्ट आधारित मूल्यांकन पर जोर: ये तरीके बधिर छात्रों के लिए अक्सर अधिक उपयुक्त होते हैं क्योंकि ये भाषा पर कम निर्भर करते हैं और व्यावहारिक समझ व कौशल दिखाने का अवसर देते हैं।
  • पोर्टफोलियो मूल्यांकन: यह निरंतर प्रगति दिखाने का एक उत्कृष्ट तरीका है और लचीलेपन की अनुमति देता है।

सबसे महत्वपूर्ण: शिक्षक और मूल्यांकनकर्ता का **धैर्य**, **सहानुभूति** और **लचीलापन**। छात्र की व्यक्तिगत आवश्यकताओं और उसकी संचार पद्धति को समझना और उसके अनुरूप ढलना सफल मूल्यांकन की कुंजी है।


5.5 ईवीएस और एसएस में शिक्षक-निर्मित परीक्षणों (टीएमटी) का डिजाइन (Designing Teacher-Made Tests (TMT) in EVS and SS)

शिक्षक-निर्मित परीक्षण (TMT) विशिष्ट कक्षा और पाठ्यक्रम के अनुरूप शिक्षक द्वारा डिज़ाइन किए गए परीक्षण होते हैं। ये रचनात्मक और योगात्मक दोनों उद्देश्यों के लिए हो सकते हैं। इन्हें प्रभावी बनाने के लिए:

1. स्पष्ट उद्देश्य निर्धारित करें (Define Clear Objectives):

  • परीक्षण का उद्देश्य क्या है? (ज्ञान परखना? समझ जाँचना? अनुप्रयोग देखना? विश्लेषण क्षमता आंकना?)
  • परीक्षण किस विशिष्ट इकाई या विषयवस्तु को कवर करेगा?
  • यह किस प्रकार का मूल्यांकन है? (रचनात्मक या योगात्मक?)

2. परीक्षण योजना (ब्लूप्रिंट) तैयार करें (Prepare a Test Blueprint):

  • यह एक टेबल या चार्ट होता है जो यह सुनिश्चित करता है कि परीक्षण पाठ्यक्रम के सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों और उद्देश्यों को उचित भारांक (Weightage) के साथ कवर करता है।
  • आयाम (Dimensions):
    • विषयवस्तु इकाइयाँ (Content Units): परीक्षण में शामिल होने वाले अध्याय या टॉपिक।
    • अधिगम उद्देश्य (Learning Objectives): ज्ञान, समझ, अनुप्रयोग, विश्लेषण, संश्लेषण, मूल्यांकन (ब्लूम का वर्गीकरण)।
    • प्रश्नों की संख्या और अंक वितरण (Number of Questions & Marks Distribution): प्रत्येक विषयवस्तु इकाई और अधिगम उद्देश्य के लिए कितने प्रश्न और कुल कितने अंक निर्धारित हैं।
    • प्रश्न प्रारूप (Question Formats): विभिन्न प्रकार के प्रश्नों (वस्तुनिष्ठ, लघु उत्तरीय, दीर्घ उत्तरीय) का वितरण।
  • उदाहरण (ईवीएस - कक्षा 5, जल):
    विषयवस्तु इकाई ज्ञान (2 अंक) समझ (3 अंक) अनुप्रयोग (3 अंक) कुल अंक प्रश्न प्रारूप (उदाहरण)
    जल के स्रोत 1 MCQ (1) 1 SAQ (2) - 3 MCQ: स्रोतों की सूची; SAQ: भौमजल क्या?
    जल संरक्षण - 1 SAQ (2) 1 LAQ (5) 7 SAQ: एक उपाय बताएँ; LAQ: घर में बचत के उपाय
    जल प्रदूषण 1 VSAQ (1) - 1 प्रोजेक्ट (5) 6 VSAQ: प्रदूषण का एक कारण; प्रोजेक्ट: स्थानीय स्रोत का सर्वे
    कुल 2 5 8 16

3. उपयुक्त प्रश्न प्रारूपों का चयन करें (Choose Appropriate Question Formats):

  • वस्तुनिष्ठ प्रकार (Objective Type): तथ्यात्मक ज्ञान, पहचान, बुनियादी समझ के लिए। समय कुशल, व्यापक कवरेज।
    • बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ), सत्य-असत्य, रिक्त स्थान भरना, मिलान करना।
  • लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions - SAQ): संक्षिप्त स्पष्टीकरण, परिभाषा, उदाहरण देने के लिए। समझ और संक्षिप्त अभिव्यक्ति का आकलन।
  • दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions - LAQ/Essay Type): गहन समझ, विश्लेषण, तर्क, संश्लेषण और व्यवस्थित अभिव्यक्ति के लिए। (जैसे - "भारत में सामाजिक असमानता के कारणों की व्याख्या करें", "स्थानीय पार्क में जैव विविधता के संरक्षण के उपाय सुझाएँ")।
  • आरेख/मानचित्र आधारित प्रश्न: स्थानिक समझ और व्याख्या कौशल के लिए (विशेषकर एसएस और ईवीएस में)।
  • स्थिति आधारित प्रश्न (Situation-Based Questions): वास्तविक जीवन की स्थितियाँ प्रस्तुत करके समस्या समाधान और निर्णय क्षमता का आकलन।

4. स्पष्ट और निर्दोष प्रश्न तैयार करें (Frame Clear and Error-Free Questions):

  • सरल एवं स्पष्ट भाषा: भाषा छात्रों की समझ के स्तर के अनुरूप होनी चाहिए। अस्पष्ट या द्वि-अर्थी शब्दों से बचें।
  • सटीक निर्देश: प्रत्येक खंड और प्रश्न के लिए स्पष्ट निर्देश दें कि क्या करना है (जैसे - 'स्पष्ट कीजिए', 'तुलना कीजिए', 'कारण बताइए', 'उदाहरण दीजिए')।
  • उचित कठिनाई स्तर: प्रश्नों का मिश्रण होना चाहिए - कुछ सरल, अधिकांश मध्यम और कुछ चुनौतीपूर्ण। ब्लूप्रिंट के अनुसार उद्देश्यों को ध्यान में रखें।
  • निष्पक्षता: प्रश्न किसी विशेष समूह के पक्ष या विपक्ष में नहीं होने चाहिए। सांस्कृतिक संवेदनशीलता बरतें।
  • तार्किक क्रम: प्रश्नों को सरल से जटिल की ओर या विषयवस्तु के अनुक्रम में व्यवस्थित करें।

5. मूल्यांकन मानदंड (रूब्रिक) विकसित करें (Develop Evaluation Criteria - Rubrics):

  • विशेषकर लघु और दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों, प्रोजेक्ट्स और प्रस्तुतियों के लिए।
  • रूब्रिक में स्पष्ट रूप से बताएँ कि उत्तर के किन पहलुओं (जैसे - विषयवस्तु की शुद्धता, समझ की गहराई, तर्क का सुसंगत होना, उदाहरणों का उपयोग, भाषा और प्रस्तुति) के लिए कितने अंक दिए जाएँगे।
  • यह मूल्यांकन को अधिक वस्तुनिष्ठ, पारदर्शी और सुसंगत बनाता है।

6. परीक्षण का पूर्व परीक्षण और संशोधन (Pilot Test and Revise):

  • यदि संभव हो, तो कुछ छात्रों पर परीक्षण का पूर्व परीक्षण करें या सहकर्मी शिक्षकों से समीक्षा करवाएँ।
  • असंदिग्धता, कठिनाई स्तर, समय सीमा और समग्र प्रभावशीलता की जाँच करें।
  • प्रतिक्रिया के आधार पर आवश्यक संशोधन करें।

7. प्रशासन और अंकन (Administration and Marking):

  • परीक्षा के दिन स्पष्ट निर्देश दोहराएँ और छात्रों के प्रश्नों के उत्तर दें।
  • अंकन योजना (मॉडल उत्तर और रूब्रिक) के अनुसार निष्पक्ष और सुसंगत रूप से अंक दें।
  • रचनात्मक मूल्यांकन के लिए, प्रतिपुष्टि पर ध्यान दें (क्या अच्छा हुआ? क्या सुधार किया जा सकता है?)।

ईवीएस/एसएस विशिष्ट सुझाव:

  • वास्तविक जीवन से जोड़ें: स्थानीय पर्यावरणीय मुद्दों, सामाजिक घटनाओं या ऐतिहासिक साक्ष्यों पर आधारित प्रश्न बनाएँ।
  • आलोचनात्मक चिंतन को प्रोत्साहित करें: "क्यों", "कैसे", "तुलना करें", "मूल्यांकन करें" जैसे शब्दों वाले प्रश्न पूछें।
  • मूल्यों और अभिवृत्तियों को शामिल करें: "आपके विचार में...", "आप क्या करेंगे यदि..." जैसे प्रश्नों के माध्यम से।
  • दृश्यों का उपयोग करें: मानचित्र, ग्राफ़, कार्टून, चित्रों पर आधारित प्रश्न शामिल करें।

निष्कर्ष: ईवीएस और सामाजिक विज्ञान में प्रभावी मूल्यांकन केवल ज्ञान की परख नहीं है; यह छात्रों की समझ, कौशल, मूल्यों और समग्र व्यक्तित्व विकास का आईना है। रचनात्मक और योगात्मक मूल्यांकन के संतुलित उपयोग, विविध तकनीकों के प्रयोग, सतत और व्यापक दृष्टिकोण और विशेष आवश्यकताओं के लिए समायोजन के माध्यम से ही हम एक न्यायसंगत और सार्थक मूल्यांकन प्रणाली विकसित कर सकते हैं जो वास्तव में छात्रों के सीखने और विकास को गति प्रदान करे। शिक्षक-निर्मित परीक्षण इस प्रक्रिया का एक शक्तिशाली उपकरण है, बशर्ते उसे सावधानीपूर्वक उद्देश्यपूर्ण ढंग से डिज़ाइन किया गया हो।

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