यूनिट 4: इतिहास, भूगोल और नागरिक शास्त्र
यह यूनिट भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण कालखंडों, भूगोल की मौलिक अवधारणाओं और नागरिक शास्त्र के आधारभूत सिद्धांतों पर प्रकाश डालती है। यह छात्रों को भारत के अतीत, उसकी भौगोलिक विशेषताओं और लोकतांत्रिक व्यवस्था की समझ विकसित करने में सहायता करती है।
विषय-सूची (Table of Contents)
- 4.1 प्रारंभिक एवं मध्यकाल में विभिन्न राजवंशों का उदय
- 4.2 ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना और विस्तार
- 4.3 1857 से 1947 तक भारत का स्वतंत्रता संघर्ष
- 4.4 लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा एवं भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ
- 4.5 ग्लोब, पृथ्वी, सौरमंडल की समझ और दिन-रात तथा ऋतुओं की अवधारणा
4.1 प्रारंभिक एवं मध्यकाल में विभिन्न राजवंशों का उदय
भारतीय इतिहास का यह काल विभिन्न शक्तिशाली राजवंशों के उत्थान और पतन से चिह्नित है:
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प्राचीन काल (लगभग 300 ईस्वी तक):
- मौर्य वंश (322-185 ईसा पूर्व): चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित, सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म अपनाया और प्रसार किया। विशाल साम्राज्य, प्रशासनिक व्यवस्था (प्रांत, जिले), धम्म का प्रचार।
- गुप्त वंश (लगभग 320-550 ईस्वी): चंद्रगुप्त प्रथम द्वारा स्थापित। "भारत का स्वर्ण युग" कहलाता है। समुद्रगुप्त (विजयी सम्राट), चंद्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) जैसे शक्तिशाली शासक। साहित्य (कालिदास), कला, विज्ञान (आर्यभट्ट), व्यापार का उत्कर्ष। सांस्कृतिक एकीकरण।
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प्रारंभिक मध्यकाल (लगभग 700-1200 ईस्वी):
- राजपूत राजवंश: उत्तर और पश्चिमी भारत में विभिन्न राजपूत शाखाएँ (प्रतिहार, परमार, चौहान, चालुक्य, राष्ट्रकूट आदि) शक्तिशाली हुईं। वीरता, सामंतवाद, स्थानीय स्वायत्तता की विशेषता। मुस्लिम आक्रमणों (गजनी, गोरी) का सामना।
- पाल वंश (बंगाल, लगभग 750-1161 ईस्वी): बौद्ध धर्म के संरक्षक, नालंदा विश्वविद्यालय को समर्थन। शक्तिशाली नौसेना।
- चोल वंश (दक्षिण भारत, लगभग 850-1279 ईस्वी): राजराजा प्रथम और राजेंद्र चोल जैसे महान शासक। स्थिर एवं कुशल प्रशासन (स्वशासित ग्राम सभाएँ - उर, सभा), व्यापारिक समुद्री साम्राज्य (दक्षिण-पूर्व एशिया तक), स्थापत्य कला (तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर) में उत्कृष्टता।
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मध्यकाल (लगभग 1200-1700 ईस्वी):
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दिल्ली सल्तनत (1206-1526 ईस्वी):
- गुलाम वंश (1206-1290): कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा स्थापना, कुतुब मीनार का निर्माण। इल्तुतमिश - वास्तविक संस्थापक। बलबन - राजत्व के सिद्धांत।
- खिलजी वंश (1290-1320): अलाउद्दीन खिलजी - विस्तारवादी नीति (दक्षिण तक), बाजार नियंत्रण, सैन्य सुधार।
- तुगलक वंश (1320-1414): मुहम्मद बिन तुगलक - विवादास्पद सुधार (राजधानी परिवर्तन, सांकेतिक मुद्रा)। फिरोज शाह तुगलक - लोक कल्याणकारी कार्य (नहरें, अस्पताल, स्कूल)।
- सैयद एवं लोदी वंश (1414-1451, 1451-1526): कमजोर वंश, पानीपत की पहली लड़ाई (1526) में इब्राहिम लोदी की पराजय।
- विजयनगर साम्राज्य (1336-1646 ईस्वी): दक्षिण भारत में हरिहर और बुक्का द्वारा स्थापित। कृष्णदेव राय के शासन में चरमोत्कर्ष। समृद्ध व्यापार, भव्य मंदिर (हंपी), सहिष्णुता। तालीकोटा का युद्ध (1565) में पतन की शुरुआत।
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मुगल साम्राज्य (1526-1857 ईस्वी):
- बाबर (1526-1530): पानीपत की पहली लड़ाई (1526) में विजय, साम्राज्य की स्थापना।
- हुमायूँ (1530-1540, 1555-1556): शेरशाह सूरी द्वारा पराजित, बाद में पुनः सत्ता प्राप्त की।
- अकबर (1556-1605): सबसे महान मुगल। विशाल साम्राज्य विस्तार, दीन-ए-इलाही (सर्वधर्म समभाव), मनसबदारी प्रथा, भू-राजस्व व्यवस्था (जब्ती प्रणाली), कला-साहित्य का संरक्षण। फतेहपुर सीकरी।
- जहाँगीर (1605-1627): नूरजहाँ का प्रभाव, न्याय की श्रृंखला। कला प्रेमी।
- शाहजहाँ (1627-1658): स्थापत्य कला का स्वर्ण काल (ताजमहल, लाल किला, जामा मस्जिद)।
- औरंगजेब (1658-1707): साम्राज्य का अधिकतम विस्तार लेकिन कट्टर नीतियों (जज़िया कर पुनर्लगान, मंदिर विध्वंस) से असंतोष। मराठों, सिक्खों, राजपूतों के विद्रोह। उसकी मृत्यु के बाद साम्राज्य का पतन शुरू।
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दिल्ली सल्तनत (1206-1526 ईस्वी):
महत्वपूर्ण तथ्य:
- ये राजवंश भारत की राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक बुनियाद का निर्माण करते हैं।
- प्रशासनिक व्यवस्थाएँ (मौर्य, गुप्त, चोल, मुगल), सांस्कृतिक संश्लेषण (भक्ति-सूफी आंदोलन) और स्थापत्य शैलियाँ (हिंदू, इस्लामिक, इंडो-इस्लामिक) इस काल की देन हैं।
- इनके उत्थान-पतन के कारणों (युद्ध, उत्तराधिकार संघर्ष, प्रशासनिक दोष, आर्थिक दबाव, बाहरी आक्रमण) का अध्ययन महत्वपूर्ण है।
4.2 ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना और विस्तार
भारत में ब्रिटिश सत्ता का आगमन व्यापार के उद्देश्य से हुआ, जो धीरे-धीरे राजनीतिक साम्राज्यवाद में बदल गया:
- ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन (1600 ईस्वी): रानी एलिजाबेथ प्रथम से व्यापारिक एकाधिकार प्राप्त कर भारत आई। प्रारंभिक फैक्ट्रियाँ सूरत, मद्रास (चेन्नई), बॉम्बे (मुंबई), कलकत्ता (कोलकाता) में स्थापित।
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स्थानीय शक्तियों से संघर्ष और संधियाँ:
- प्लासी का युद्ध (1757): रॉबर्ट क्लाइव ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को मीर जाफ़र की गद्दारी से हराया। बंगाल पर कंपनी का प्रभावी नियंत्रण स्थापित हुआ।
- बक्सर का युद्ध (1764): कंपनी ने मीर कासिम, शुजाउद्दौला (अवध) और शाह आलम द्वितीय (मुगल) की संयुक्त सेना को हराया। बंगाल, बिहार, उड़ीसा पर पूर्ण नियंत्रण और दीवानी अधिकार प्राप्त हुए।
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विस्तार की नीतियाँ:
- युद्ध एवं विजय: मैसूर (टीपू सुल्तान के खिलाफ चार युद्ध), मराठा (तीन युद्ध), सिक्खों के खिलाफ युद्ध।
- सहायक संधि (Subsidiary Alliance - वेलेजली): भारतीय राज्यों को अपनी सेना भंग कर ब्रिटिश सेना रखनी पड़ती थी, जिसका खर्च राज्य को देना होता था। बाहरी मामलों पर अंग्रेजों का नियंत्रण। हैदराबाद पहला राज्य।
- व्यपगत का सिद्धांत (Doctrine of Lapse - डलहौजी): यदि किसी राजा की कोई प्राकृतिक (वैध) पुरुष उत्तराधिकारी नहीं होता था, तो उसकी रियासत ब्रिटिश साम्राज्य में मिला ली जाती थी। सतारा (1848), संबलपुर (1849), झाँसी (1853), नागपुर (1854), अवध (1856 - अन्य कारणों से) इसी नीति से हड़पे गए।
- कूटनीति एवं विभाजन: राजाओं के बीच फूट डालकर उन्हें कमजोर करना।
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प्रशासनिक नियंत्रण:
- रेग्युलेटिंग एक्ट (1773): बंगाल के गवर्नर को गवर्नर जनरल बनाया (वॉरेन हेस्टिंग्स पहले), कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना।
- पिट्स इंडिया एक्ट (1784): कंपनी पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण (बोर्ड ऑफ कंट्रोल)।
- चार्टर एक्ट (1833): बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बनाया गया (लॉर्ड विलियम बेंटिक पहले)। विधायी शक्तियों का केंद्रीकरण।
- 1857 के विद्रोह के बाद (1858): भारत सरकार अधिनियम द्वारा कंपनी का शासन समाप्त। भारत का शासन सीधे ब्रिटिश क्राउन (महारानी विक्टोरिया) के अधीन आया। भारत सचिव (लंदन) और वायसराय (भारत) की नियुक्ति।
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आर्थिक शोषण:
- भारत को कच्चे माल का स्रोत और तैयार माल का बाजार बनाया गया।
- भारी भू-राजस्व लगान, मुफ्त में कच्चा माल निर्यात, तैयार माल पर भारी आयात शुल्क से भारतीय हस्तशिल्प (विशेषकर कपड़ा उद्योग) का विनाश।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- ब्रिटिश साम्राज्यवाद का भारतीय अर्थव्यवस्था, समाज और राजनीति पर गहरा विनाशकारी प्रभाव पड़ा।
- स्थानीय शासन व्यवस्थाएँ ध्वस्त हुईं, पारंपरिक उद्योग नष्ट हुए, कृषि पर निर्भरता बढ़ी।
- इसी विस्तार और शोषण ने राष्ट्रीय चेतना और स्वतंत्रता संघर्ष को जन्म दिया।
4.3 1857 से 1947 तक भारत का स्वतंत्रता संघर्ष
भारत की आजादी का सफर एक लंबा और बहुआयामी संघर्ष था:
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1857 का विद्रोह: प्रथम स्वतंत्रता संग्रह (The Revolt of 1857: The First War of Independence)
- कारण: सैनिक (चर्बी वाले कारतूस, धार्मिक भय), राजनीतिक (व्यपगत सिद्धांत, रियासतों का असंतोष), सामाजिक-धार्मिक (ईसाई मिशनरियों की गतिविधियाँ, पश्चिमी शिक्षा का भय), आर्थिक (किसानों का शोषण, शिल्पकारों की बेरोजगारी)।
- प्रमुख घटनाएँ: मेरठ से शुरुआत (10 मई 1857), दिल्ली में बहादुर शाह जफर को सम्राट घोषित करना, कानपुर में नाना साहब/तात्या टोपे, झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई, लखनऊ में बेगम हजरत महल, बिहार में कुंवर सिंह।
- परिणाम: विद्रोह दबा दिया गया। कंपनी शासन समाप्त, भारत सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन। सैन्य और प्रशासनिक ढाँचे में बदलाव। भारतीयों पर अविश्वास बढ़ा।
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राष्ट्रवाद का उदय और प्रारंभिक संगठन (1885-1905):
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (1885): ए.ओ. ह्यूम द्वारा बॉम्बे में स्थापित। प्रारंभ में मध्यम वर्गीय, नरमपंथी नेतृत्व (दादाभाई नौरोजी, गोपाल कृष्ण गोखले, सुरेंद्रनाथ बनर्जी)। संवैधानिक सुधारों की माँग।
- उग्र राष्ट्रवाद का उदय: बाल गंगाधर तिलक ("स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है"), लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल (लाल-बाल-पाल)। जनता को जागृत करने पर जोर। सार्वजनिक उत्सवों (गणेशोत्सव, शिवाजी उत्सव) का उपयोग।
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विवेकपूर्ण काल और क्रांतिकारी गतिविधियाँ (1905-1919):
- बंगाल विभाजन (1905): लॉर्ड कर्जन द्वारा। विरोध में स्वदेशी आंदोलन चला - विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, राष्ट्रीय शिक्षा पर बल। कांग्रेस में गरम दल-नरम दल विभाजन (सूरत अधिवेशन 1907)।
- मुस्लिम लीग की स्थापना (1906): अलग राजनीतिक प्रतिनिधित्व की माँग।
- क्रांतिकारी आंदोलन: अंग्रेज अधिकारियों की हत्या, धन लूट (काकोरी कांड), विदेशों से सहायता। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु, खुदीराम बोस, रासबिहारी बोस प्रमुख नाम।
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गांधी युग और जन आंदोलन (1919-1947):
- गांधी जी का भारत आगमन (1915): दक्षिण अफ्रीका से लौटे। चंपारण (1917), खेड़ा (1918), अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918) में सत्याग्रह का सफल प्रयोग।
- रोलेट एक्ट (1919) और जलियाँवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल 1919): राष्ट्रव्यापी आक्रोश। गांधी जी ने असहयोग आंदोलन (1920-22) शुरू किया। चौरी-चौरा हिंसा के बाद वापस लिया।
- साइमन कमीशन विरोध (1928): "साइमन गो बैक" के नारे। लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज से मृत्यु।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34): दांडी मार्च (नमक सत्याग्रह), सविनय कानून तोड़ना। गांधी-इरविन समझौता (1931), गोलमेज सम्मेलन।
- भारत सरकार अधिनियम 1935: प्रांतों में स्वायत्त शासन। कांग्रेस ने 1937 के चुनाव जीते।
- क्रिप्स मिशन (1942): युद्धकालीन सहयोग के बदले युद्ध के बाद डोमिनियन स्टेटस का प्रस्ताव। अस्वीकृत।
- भारत छोड़ो आंदोलन (1942): "करो या मरो" का नारा। तत्काल स्वतंत्रता की माँग। गांधी सहित नेताओं को गिरफ्तार किया गया। जन आंदोलन।
- नेताजी सुभाष चंद्र बोस: आजाद हिंद फौज (INA) का गठन। "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।"
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आजादी और विभाजन (1947):
- कैबिनेट मिशन (1946): संविधान सभा गठन का प्रस्ताव। असफल।
- सीधी कार्रवाई दिवस (16 अगस्त 1946): लीग द्वारा बुलाया गया। भीषण सांप्रदायिक दंगे।
- माउंटबेटन योजना (जून 1947): भारत के विभाजन (हिंदुस्तान और पाकिस्तान) और स्वतंत्रता की घोषणा।
- भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम (जुलाई 1947): ब्रिटिश संसद द्वारा पारित।
- 15 अगस्त 1947: भारत को आजादी मिली। जवाहरलाल नेहरू प्रथम प्रधानमंत्री बने।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- यह संघर्ष विभिन्न रणनीतियों (संवैधानिक, असहयोग, सविनय अवज्ञा, क्रांतिकारी) से लड़ा गया।
- लाखों सामान्य लोगों, किसानों, मजदूरों, महिलाओं और छात्रों ने बलिदान दिया।
- इसने भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित किया, लेकिन विभाजन की त्रासदी के साथ।
4.4 लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा एवं भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ
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लोकतंत्र (Democracy):
- अवधारणा: "लोक" (जनता) का "तंत्र" (शासन)। ऐसी शासन प्रणाली जहाँ सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है, जनता के प्रति जवाबदेह होती है और जनता के हित में कार्य करती है।
- भारतीय संदर्भ: भारत एक प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र (Representative Democracy) है। जनता अपने प्रतिनिधियों (सांसद, विधायक) को चुनती है, जो उसकी ओर से शासन चलाते हैं।
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मूल तत्व:
- जनता की सर्वोच्चता (Popular Sovereignty)
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव (Free & Fair Elections)
- वयस्क मताधिकार (Universal Adult Franchise - 18 वर्ष)
- बहुदलीय प्रणाली (Multi-Party System)
- कानून का शासन (Rule of Law)
- नागरिक अधिकारों की सुरक्षा (Protection of Fundamental Rights)
- स्वतंत्र न्यायपालिका (Independent Judiciary)
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धर्मनिरपेक्षता (Secularism):
- अवधारणा: राज्य का किसी विशेष धर्म से कोई संबंध नहीं होता। सभी धर्मों को समान दर्जा और संरक्षण प्राप्त होता है। धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता।
- भारतीय मॉडल: भारतीय धर्मनिरपेक्षता सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता (Positive Secularism) है। यह केवल धर्म से राज्य के पृथक्करण (Separation) तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और समर्थन भी दर्शाती है। राज्य सभी धर्मों के मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है (जैसे सामाजिक सुधार)।
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संवैधानिक प्रावधान:
- प्रस्तावना (Preamble) में 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द (42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया)।
- अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समता।
- अनुच्छेद 15: धर्म के आधार पर भेदभाव का प्रतिषेध।
- अनुच्छेद 16: सरकारी नौकरियों में अवसर की समानता।
- अनुच्छेद 25-28: धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अंतरात्मा की स्वतंत्रता, धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता)।
- राज्य किसी धर्म विशेष को कोई विशेषाधिकार नहीं देता।
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भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ (Salient Features of the Indian Constitution):
- विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान: मूल रूप में 395 अनुच्छेद, 22 भाग, 8 अनुसूचियाँ (वर्तमान में 12 अनुसूचियाँ)।
- समवर्ती सूची के साथ संघात्मक शासन प्रणाली: केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन (संघ सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची)। आपातकाल में एकात्मक बन जाता है।
- संसदीय शासन प्रणाली: राष्ट्रपति (संवैधानिक प्रमुख) और प्रधानमंत्री (वास्तविक कार्यकारी प्रमुख)। मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी।
- मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 12-35): संविधान द्वारा गारंटीकृत अधिकार जो व्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हैं। (समता, स्वतंत्रता, शोषण के विरुद्ध, धर्म, संस्कृति-शिक्षा, संवैधानिक उपचार)।
- मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद 51A): 42वें संशोधन (1976) द्वारा जोड़े गए। नागरिकों के प्रति संवैधानिक दायित्व (राष्ट्रध्वज का सम्मान, राष्ट्रगान गाना, देश की रक्षा करना, प्राकृतिक पर्यावरण संरक्षण आदि)।
- राज्य के नीति निर्देशक तत्व (अनुच्छेद 36-51): सरकार के लिए दिशा-निर्देश। कल्याणकारी राज्य स्थापित करना (सामाजिक-आर्थिक न्याय)। ये न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं।
- स्वतंत्र न्यायपालिका: संविधान की व्याख्या करना और उसकी रक्षा करना। न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति।
- एकल नागरिकता: भारत के सभी नागरिकों को केवल भारतीय नागरिकता प्राप्त है, राज्य स्तरीय नागरिकता नहीं।
- आपातकालीन प्रावधान (अनुच्छेद 352, 356, 360): राष्ट्रीय आपात, राज्यों में संवैधानिक तंत्र विफलता पर राष्ट्रपति शासन, वित्तीय आपात।
- संशोधन प्रक्रिया (अनुच्छेद 368): संविधान में परिवर्तन करने की प्रक्रिया। कठोर और लचीले दोनों तत्व।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- भारतीय संविधान एक जीवंत दस्तावेज है जो समय के साथ विकसित होता रहा है (100 से अधिक संशोधन)।
- यह लोकतंत्र, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और गणतंत्रात्मक मूल्यों पर आधारित है।
- मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व सामाजिक-आर्थिक न्याय स्थापित करने का प्रयास करते हैं।
4.5 ग्लोब, पृथ्वी, सौरमंडल की समझ और दिन-रात तथा ऋतुओं की अवधारणा
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ग्लोब (Globe):
- पृथ्वी का एक छोटा, त्रि-आयामी (3D) और सटीक मॉडल।
- महत्व: पृथ्वी के आकार, अक्षांश-देशांतर रेखाओं, महाद्वीपों-महासागरों की सापेक्ष स्थिति, समय क्षेत्रों को समझने में मदद करता है।
- ध्रुव (Poles): उत्तरी ध्रुव (North Pole) और दक्षिणी ध्रुव (South Pole) - पृथ्वी के घूर्णन अक्ष के सिरे।
- मध्याह्न रेखा / विषुवत वृत्त (Equator): पृथ्वी को उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध में बाँटने वाली काल्पनिक रेखा (0° अक्षांश)।
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अक्षांश और देशांतर रेखाएँ (Latitudes and Longitudes):
- अक्षांश (Latitudes): विषुवत वृत्त के समानांतर पूर्व-पश्चिम चलने वाली काल्पनिक रेखाएँ। विषुवत वृत्त (0°), कर्क रेखा (23.5°N), मकर रेखा (23.5°S), आर्कटिक वृत्त (66.5°N), अंटार्कटिक वृत्त (66.5°S)। तापमान और जलवायु निर्धारण में महत्वपूर्ण।
- देशांतर (Longitudes): उत्तरी से दक्षिणी ध्रुव तक चलने वाली काल्पनिक रेखाएँ। ग्रीनविच रेखा (0° देशांतर - लंदन के निकट) प्रधान मध्याह्न रेखा है। समय निर्धारण में महत्वपूर्ण (हर 15° देशांतर = 1 घंटे का अंतर)।
- महत्व: किसी स्थान की सटीक स्थिति बताना (भौगोलिक निर्देशांक), समय जानना, जलवायु क्षेत्र समझना।
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पृथ्वी (Earth):
- सूर्य से तीसरा ग्रह। जीवन के लिए ज्ञात एकमात्र ग्रह।
- आकार: एक पूर्ण गोला नहीं, ध्रुवों पर थोड़ा चपटा (घुंडलाकार गोला - Oblate Spheroid)।
- घूर्णन (Rotation): अपने अक्ष पर घूमना (पश्चिम से पूर्व)। परिणाम: दिन और रात (24 घंटे)।
- परिक्रमण (Revolution): सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाना। परिणाम: ऋतु परिवर्तन (365 ¼ दिन = 1 वर्ष)।
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सौरमंडल (Solar System):
- सूर्य और उसके चारों ओर परिक्रमा करने वाले खगोलीय पिंडों (ग्रह, उपग्रह, क्षुद्रग्रह, धूमकेतु, उल्का) का समूह।
- सूर्य (Sun): सौरमंडल का केंद्र। विशाल गैसीय गोला। ऊष्मा और प्रकाश का स्रोत।
- ग्रह (Planets): सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। आठ ग्रह (बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण)। आंतरिक/स्थलीय ग्रह: बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल (चट्टानी)। बाह्य/गैसीय ग्रह: बृहस्पति, शनि (मुख्यतः गैस)। बर्फीले दानव: अरुण, वरुण (मुख्यतः बर्फ)।
- पृथ्वी का उपग्रह: चंद्रमा (Moon)।
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दिन और रात (Day and Night):
- कारण: पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन (Rotation)।
- व्याख्या: जब पृथ्वी घूमती है, तो उसका केवल वही आधा भाग सूर्य के सामने होता है जहाँ दिन होता है। विपरीत आधे भाग पर अंधेरा (रात) होता है।
- अक्ष का झुकाव (23.5°): इसके कारण दिन-रात की अवधि साल भर थोड़ी बदलती रहती है (गर्मियों में लंबे दिन, सर्दियों में छोटे दिन)।
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ऋतु परिवर्तन (Change of Seasons):
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मुख्य कारण:
- पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर परिक्रमण (Revolution)।
- पृथ्वी के अक्ष का स्थायी झुकाव (Fixed Tilt of 23.5°)।
- व्याख्या: जैसे-जैसे पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, उसके अक्ष का झुकाव सूर्य की ओर या उससे दूर होता रहता है। इससे सूर्य की किरणें अलग-अलग अक्षांशों पर अलग-अलग कोण से पड़ती हैं और अलग-अलग समय तक।
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मुख्य ऋतुएँ (उत्तरी गोलार्ध में):
- ग्रीष्म ऋतु (Summer Solstice - ~21 जून): उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर अधिकतम झुका होता है। उत्तरी गोलार्ध में सबसे लंबा दिन, छोटी रात। सूर्य कर्क रेखा (23.5°N) पर लंबवत चमकता है।
- शीत ऋतु (Winter Solstice - ~22 दिसंबर): उत्तरी ध्रुव सूर्य से अधिकतम दूर झुका होता है। उत्तरी गोलार्ध में सबसे छोटा दिन, लंबी रात। सूर्य मकर रेखा (23.5°S) पर लंबवत चमकता है।
- वसंत एवं शरद विषुव (Spring Equinox - ~21 मार्च, Autumn Equinox - ~23 सितंबर): सूर्य विषुवत वृत्त (0°) पर लंबवत चमकता है। पूरी पृथ्वी पर दिन-रात बराबर होते हैं।
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मुख्य कारण:
महत्वपूर्ण तथ्य:
- पृथ्वी की गतियाँ (घूर्णन और परिक्रमण) और अक्ष का झुकाव ही दिन-रात और ऋतुओं के चक्र के लिए जिम्मेदार हैं।
- ग्लोब और अक्षांश-देशांतर रेखाएँ पृथ्वी को समझने और स्थानों को ढूँढ़ने के मूलभूत उपकरण हैं।
- सौरमंडल में पृथ्वी का स्थान जीवन के लिए अनुकूल है।
निष्कर्ष: यह यूनिट भारत के गौरवशाली अतीत, उसके भौगोलिक स्वरूप और लोकतांत्रिक मूल्यों की नींव से परिचय कराती है। यह ज्ञान छात्रों को एक जिम्मेदार और जागरूक नागरिक बनने की दिशा में सहायक होता है।