Unit 3 Methods and Skills of Teaching Social Science, सामाजिक विज्ञान शिक्षण की विधियाँ एवं कौशल

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यूनिट 3: सामाजिक विज्ञान शिक्षण की विधियाँ एवं कौशल (Unit 3: Methods and Skills of Teaching Social Science)



परिचय

सामाजिक विज्ञान (Social Science) और पर्यावरण अध्ययन (EVS) विषयों को रोचक, प्रासंगिक और प्रभावी ढंग से पढ़ाने के लिए शिक्षण विधियों और कौशलों का ज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह यूनिट इन्हीं विधियों, कौशलों, संसाधनों और योजना बनाने के तरीकों पर केंद्रित है।

3.1 शिक्षण विधियों का अवलोकन (An overview of methods of teaching)

सामाजिक विज्ञान को समझने और उसका विश्लेषण करने के लिए विभिन्न शिक्षण विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं। प्रत्येक विधि की अपनी विशेषताएँ और उद्देश्य होते हैं:

  1. स्रोत विधि (Source Method):

    • अवधारणा: इसमें ऐतिहासिक या सामाजिक अध्ययन के लिए प्राथमिक स्रोतों (मूल दस्तावेज़, पत्र, डायरियाँ, अखबार की कतरनें, तस्वीरें, मानचित्र, कलाकृतियाँ) का उपयोग किया जाता है।
    • विवरण: विद्यार्थी सीधे मूल सामग्री से जुड़ते हैं, तथ्यों की खोज करते हैं, उनका विश्लेषण करते हैं, विभिन्न दृष्टिकोणों को समझते हैं और स्वयं निष्कर्ष निकालना सीखते हैं। यह इतिहास को "जीवंत" बनाती है और गंभीर चिंतन को प्रोत्साहित करती है।
    • उदाहरण: भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बारे में पढ़ाते समय महात्मा गांधी के मूल पत्रों या उस समय के अखबारों की सुर्खियों का उपयोग करना।
  2. अन्वेषण विधि (Discovery Method):

    • अवधारणा: इस विधि में शिक्षक विद्यार्थियों को ऐसी स्थितियाँ प्रदान करते हैं जहाँ वे स्वयं प्रश्न पूछें, जाँच-पड़ताल करें, प्रयोग करें और सूचनाओं के आधार पर स्वयं अवधारणाओं, सिद्धांतों या समाधानों की 'खोज' करें।
    • विवरण: यह विद्यार्थी-केंद्रित विधि है जो जिज्ञासा, समस्या-समाधान क्षमता और स्वतंत्र सोच को बढ़ावा देती है। शिक्षक मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है।
    • उदाहरण: विभिन्न प्रकार की मिट्टी के नमूनों को देखकर और उन पर पानी डालकर यह खोजना कि कौन-सी मिट्टी जलधारण क्षमता अधिक रखती है।
  3. प्रोजेक्ट विधि (Project Method):

    • अवधारणा: विद्यार्थी किसी वास्तविक जीवन की समस्या या विषय पर एक परियोजना (प्रोजेक्ट) पर समूह में या व्यक्तिगत रूप से कार्य करते हैं। यह समस्या-समाधान की एक प्रक्रिया है जिसमें नियोजन, निष्पादन और मूल्यांकन शामिल होता है।
    • विवरण: यह विधि व्यावहारिक अनुभव, सहयोग, जिम्मेदारी और विभिन्न कौशलों (अनुसंधान, संचार, प्रबंधन) के विकास पर बल देती है। इसका उद्देश्य एक मूर्त उत्पाद (रिपोर्ट, मॉडल, सर्वे, नाटक आदि) बनाना होता है।
    • उदाहरण: "हमारे मोहल्ले में जल संरक्षण" विषय पर एक परियोजना, जिसमें जल उपयोग का सर्वे, जागरूकता पोस्टर बनाना, वर्षा जल संचयन का एक छोटा मॉडल तैयार करना शामिल हो।
  4. समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method):

    • अवधारणा: इस विधि में विद्यार्थियों के सामने एक सार्थक समस्या प्रस्तुत की जाती है और उन्हें तार्किक चरणों (समस्या को समझना, परिकल्पना बनाना, डेटा एकत्र करना, समाधान ढूँढना, परीक्षण करना और निष्कर्ष निकालना) का पालन करके उसका समाधान खोजने के लिए प्रेरित किया जाता है।
    • विवरण: यह तार्किक चिंतन, विश्लेषणात्मक क्षमता, निर्णय लेने और रचनात्मकता को विकसित करती है। यह सामाजिक विज्ञान में विवादास्पद मुद्दों को समझने के लिए विशेष रूप से उपयोगी है।
    • उदाहरण: "हमारे स्कूल में कचरा प्रबंधन की समस्या और उसके समाधान" पर चर्चा करना और व्यावहारिक उपाय सुझाना।
  5. खेल विधि (Play way Method):

    • अवधारणा: खेल-खेल में सीखने पर आधारित यह विधि मुख्यतः प्राथमिक स्तर पर प्रभावी है। इसमें शैक्षिक खेलों, भूमिका निर्वाह, गतिविधियों और मनोरंजक कार्यों के माध्यम से अवधारणाओं को सिखाया जाता है।
    • विवरण: यह विधि सीखने को आनंददायक बनाती है, प्रेरित करती है, सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करती है और सामाजिक कौशल विकसित करती है।
    • उदाहरण: व्यापार की अवधारणा को समझाने के लिए 'बाज़ार-बाज़ार' खेल खेलना, जहाँ बच्चे अलग-अलग भूमिकाएँ (दुकानदार, ग्राहक) निभाते हैं।
  6. क्षेत्र अध्ययन विधि / भ्रमण विधि (Field Study Method / Excursion Method):

    • अवधारणा: विद्यार्थियों को वास्तविक परिवेश (जैसे संग्रहालय, ऐतिहासिक स्थल, उद्योग, सामुदायिक केंद्र, पार्क, नदी किनारे, गाँव) में ले जाकर प्रत्यक्ष अनुभव करवाना।
    • विवरण: यह किताबी ज्ञान को वास्तविक दुनिया से जोड़ती है, प्रत्यक्ष अवलोकन और डेटा संग्रह को बढ़ावा देती है, और पर्यावरण एवं सामाजिक वास्तविकताओं की गहरी समझ विकसित करती है। भ्रमण के पहले, दौरान और बाद में उचित तैयारी और अनुवर्ती गतिविधियाँ आवश्यक हैं।
    • उदाहरण: स्थानीय जल शोधन संयंत्र का भ्रमण कर जल शुद्धिकरण की प्रक्रिया का प्रत्यक्ष अवलोकन करना।
  7. अवलोकन विधि (Observation Method):

    • अवधारणा: किसी वस्तु, घटना, प्रक्रिया या व्यवहार को सावधानीपूर्वक और व्यवस्थित तरीके से देखना और उसका विवरण रिकॉर्ड करना।
    • विवरण: यह एक मूलभूत वैज्ञानिक एवं सामाजिक अनुसंधान कौशल है। यह विस्तार पर ध्यान, धैर्य और वस्तुनिष्ठता विकसित करती है। इसे क्षेत्र अध्ययन का एक अभिन्न अंग माना जा सकता है।
    • उदाहरण: स्कूल के आस-पास के पार्क में पक्षियों के प्रकार और उनके व्यवहार का अवलोकन करना और रिपोर्ट बनाना।
  8. पेंडुलम विधि (Pendulum Method):

    • अवधारणा: यह शब्द कभी-कभी एक विशिष्ट शिक्षण दृष्टिकोण के लिए प्रयोग किया जाता है जहां शिक्षण दो विपरीत विचारों, अवधारणाओं या ऐतिहासिक कालों के बीच आगे-पीछे झूलता (स्विंग करता) है, ताकि तुलना, विरोधाभास और परिवर्तन को उजागर किया जा सके।
    • विवरण: इसका उद्देश्य जटिल विचारों को स्पष्ट करना, विभिन्न दृष्टिकोणों को प्रस्तुत करना और गतिशीलता को समझना है। यह ध्यान देने योग्य है कि यह एक मानकीकृत या व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त शब्दावली नहीं हो सकती है; कभी-कभी इसका प्रयोग रोचक तरीके से विषयवस्तु प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है।
    • उदाहरण: किसी राज्य या देश के इतिहास में "स्वर्ण युग" और "संकट काल" के बीच तुलनात्मक अध्ययन करना, या लोकतंत्र बनाम तानाशाही की अवधारणाओं को उनके गुण-दोषों के साथ प्रस्तुत करना।
  9. सहसंबंध विधि (Correlation Method):

    • अवधारणा: विभिन्न विषयों (जैसे इतिहास, भूगोल, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, नागरिक शास्त्र) की अवधारणाओं को, या सामाजिक विज्ञान को अन्य विषयों (गणित, विज्ञान, भाषा, कला) से जोड़कर पढ़ाना।
    • विवरण: यह विधि ज्ञान को खंडित होने से बचाती है, समग्र दृष्टिकोण विकसित करती है, और यह दिखाती है कि वास्तविक जीवन की समस्याएँ विभिन्न विषयों के ज्ञान के समन्वय से ही हल होती हैं। यह सीखने को अधिक अर्थपूर्ण और प्रासंगिक बनाती है।
    • उदाहरण: भारत की आजादी के इतिहास (इतिहास) को उस समय के आर्थिक हालात (अर्थशास्त्र), भौगोलिक कारकों (भूगोल) और सामाजिक आंदोलनों (समाजशास्त्र) से जोड़कर पढ़ाना; या जल चक्र (विज्ञान/EVS) को स्थानीय नदी (भूगोल) और जल संरक्षण के नियमों (नागरिक शास्त्र) से जोड़ना।
  10. चर्चा विधि (Discussion Method):

    • अवधारणा: किसी विशिष्ट विषय, प्रश्न या समस्या पर विद्यार्थियों के बीच विचारों, अनुभवों और तर्कों का आदान-प्रदान करवाना। यह समूह चर्चा (Group Discussion), बहस (Debate), सेमिनार (Seminar) या गोष्ठी (Symposium) के रूप में हो सकता है।
    • विवरण: यह महत्वपूर्ण चिंतन, तर्क क्षमता, स्पष्ट अभिव्यक्ति, दूसरों के विचारों को सुनने और सम्मान देने की भावना तथा सामूहिक समाधान खोजने के कौशल विकसित करती है। शिक्षक चर्चा को सुव्यवस्थित और उद्देश्यपूर्ण बनाए रखता है।
    • उदाहरण: "क्या पर्यावरण संरक्षण में सरकार की भूमिका नागरिकों की भूमिका से अधिक महत्वपूर्ण है?" विषय पर वाद-विवाद या "हमारे गाँव/मोहल्ले में स्वच्छता बढ़ाने के उपाय" पर समूह चर्चा।

विभिन्न शिक्षण विधियों का तुलनात्मक अवलोकन (सारणी):

विधि मुख्य उद्देश्य प्रमुख लाभ सीमाएँ/चुनौतियाँ
स्रोत विधि प्राथमिक स्रोतों से विश्लेषण गंभीर चिंतन, तथ्यात्मकता, ऐतिहासिक समझ स्रोत उपलब्धता, व्याख्या में कठिनाई
अन्वेषण विधि स्वयं खोज कर सीखना जिज्ञासा, समस्या-समाधान, स्वतंत्र सोच समय अधिक लगना, जटिल विषयों के लिए चुनौती
प्रोजेक्ट विधि व्यावहारिक समस्या पर कार्य करना सहयोग, जिम्मेदारी, बहु-कौशल विकास समय और संसाधन गहन, प्रबंधन चुनौती
समस्या समाधान तार्किक चरणों से समाधान खोजना विश्लेषण, निर्णय क्षमता, रचनात्मकता समय लेने वाली, सभी समस्याएँ उपयुक्त नहीं
खेल विधि खेल-खेल में सीखना रुचि, सक्रियता, सामाजिक कौशल, आनंद गंभीर विषयों के लिए सीमित, शोरगुल
क्षेत्र अध्ययन प्रत्यक्ष अनुभव करवाना वास्तविक जुड़ाव, अवलोकन कौशल, गहरी समझ सुरक्षा, लागत, संसाधन, योजना की आवश्यकता
अवलोकन विधि व्यवस्थित देखना और रिकॉर्ड करना विस्तार पर ध्यान, वस्तुनिष्ठता, धैर्य निष्कर्षों में व्यक्तिपरकता, समयसाध्य
सहसंबंध विधि विभिन्न विषयों को जोड़ना समग्र दृष्टिकोण, ज्ञान की एकरूपता, प्रासंगिकता विषयवस्तु की उपलब्धता, शिक्षक का कौशल
चर्चा विधि विचार-विमर्श करना महत्वपूर्ण चिंतन, संचार कौशल, सहिष्णुता समय प्रबंधन, शर्मीले विद्यार्थी, भटकाव

3.2 कौशल (Skills)

सामाजिक विज्ञान को प्रभावी ढंग से पढ़ाने के लिए शिक्षकों को निम्नलिखित कौशलों में निपुणता प्राप्त करनी चाहिए:

  1. नाट्यीकरण (Dramatization):

    ऐतिहासिक घटनाओं, सामाजिक परिस्थितियों या सांस्कृतिक प्रथाओं को छोटे नाटकों, रोल-प्ले या मूक अभिनय के माध्यम से प्रस्तुत करना। यह विषय को जीवंत बनाता है, भावनात्मक जुड़ाव पैदा करता है और याद रखने में मदद करता है। *(उदाहरण: स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका निभाना, पंचायती राज की बैठक का दृश्य अभिनीत करना)।*
  2. वर्णन (Narration):

    कहानी कहने के ढंग से तथ्यों, घटनाओं या प्रक्रियाओं को क्रमबद्ध, रोचक और स्पष्ट रूप से सुनाना। यह श्रवण कौशल को विकसित करता है और जानकारी को आकर्षक बनाता है। *(उदाहरण: किसी ऐतिहासिक यात्रा का वर्णन, किसी भौगोलिक स्थल की खोज की कहानी सुनाना)।*
  3. व्याख्या (Explanation):

    किसी अवधारणा, सिद्धांत, प्रक्रिया या कारण-प्रभाव संबंध को तार्किक, सरल और स्पष्ट शब्दों में समझाना। इसमें उदाहरणों, चित्रों या प्रश्नों का सहारा लिया जाता है। *(उदाहरण: जनसंख्या वृद्धि के कारणों और प्रभावों की व्याख्या करना, लोकतंत्र के सिद्धांतों को समझाना)।*
  4. कहानी कहना (Story Telling):

    कहानियों के माध्यम से नैतिक मूल्यों, सांस्कृतिक विरासत, ऐतिहासिक पहलुओं या सामाजिक मुद्दों को समझाना। यह विद्यार्थियों को भावनात्मक रूप से जोड़ती है और जटिल विचारों को सरल बनाती है। *(उदाहरण: स्थानीय लोककथाएँ सुनाना जो पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती हों, स्वतंत्रता संघर्ष से जुड़ी प्रेरक कहानियाँ सुनाना)।*
  5. भूमिका निर्वाह (Role Play):

    विद्यार्थियों को किसी विशिष्ट सामाजिक, ऐतिहासिक या राजनीतिक स्थिति में विभिन्न पात्रों (जैसे नेता, किसान, व्यापारी, पुलिस अधिकारी, पीड़ित व्यक्ति) की भूमिका निभाने के लिए कहना। यह सहानुभूति, दृष्टिकोण अपनाने की क्षमता और सामाजिक समझ विकसित करता है। *(उदाहरण: बाज़ार में वस्तु विनिमय की भूमिका निभाना, स्थानीय पर्यावरणीय समस्या पर विभिन्न हितधारकों (उद्योगपति, निवासी, सरकारी अधिकारी) की भूमिका निभाना)।*

3.3 ईवीएस और सामाजिक विज्ञान में सामुदायिक संसाधनों और समसामयिक घटनाओं का महत्व (Importance of community resources and current affairs in EVS and Social Science)

  • सामुदायिक संसाधनों का महत्व (Community Resources):

    • वास्तविक जुड़ाव: स्थानीय स्मारक, मंदिर/मस्जिद/गुरुद्वारा/चर्च, नदी, तालाब, बाज़ार, कृषि भूमि, स्थानीय उद्योग, पुस्तकालय, वृद्धजन, कारीगर, किसान, सामाजिक कार्यकर्ता आदि संसाधनों से सीधा संपर्क विद्यार्थियों को अपने परिवेश से जोड़ता है। किताबी ज्ञान जीवंत अनुभव में बदल जाता है।
    • प्रासंगिकता: स्थानीय संदर्भ में चीजें सीखना सीखने को अधिक अर्थपूर्ण और प्रासंगिक बनाता है। विद्यार्थी समझ पाते हैं कि वे जो पढ़ रहे हैं, उसका उनके दैनिक जीवन से सीधा संबंध है।
    • प्राथमिक डेटा संग्रह: सर्वेक्षण, साक्षात्कार और प्रत्यक्ष अवलोकन के माध्यम से विद्यार्थी स्वयं डेटा एकत्र कर सकते हैं, जो अनुसंधान कौशल विकसित करता है।
    • स्थानीय ज्ञान का सम्मान: स्थानीय इतिहास, परंपराओं, पर्यावरणीय ज्ञान और सामाजिक संरचना को महत्व मिलता है।
    • सामुदायिक भागीदारी: स्कूल और समुदाय के बीच सेतु बनता है। समुदाय के विशेषज्ञ कक्षा में संसाधन व्यक्ति बन सकते हैं।
  • समसामयिक घटनाओं / करंट अफेयर्स का महत्व (Current Affairs):

    • वर्तमान से जोड़ना: सामाजिक विज्ञान की अवधारणाएँ (जैसे लोकतंत्र, अर्थव्यवस्था, सामाजिक न्याय, पर्यावरणीय मुद्दे) वर्तमान घटनाओं (चुनाव, बजट, सामाजिक आंदोलन, जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, अंतर्राष्ट्रीय संबंध) के माध्यम से साकार होती हैं।
    • महत्वपूर्ण चेतना विकास: विद्यार्थी देश और दुनिया में घट रही घटनाओं को समझने, उनका विश्लेषण करने और उन पर अपनी राय बनाने में सक्षम होते हैं। यह सूचित और जिम्मेदार नागरिक बनने की दिशा में पहला कदम है।
    • पाठ्यपुस्तकों को अद्यतन करना: पाठ्यपुस्तकें कभी-कभी पुरानी हो जाती हैं। करंट अफेयर्स पढ़ाने से पाठ्यक्रम में ताजगी आती है और यह वास्तविक दुनिया के साथ अद्यतन रहता है।
    • विवादास्पद मुद्दों पर चर्चा: वर्तमान मुद्दे अक्सर विवादास्पद होते हैं और उन पर चर्चा करने से विद्यार्थियों में बहस करने, तर्कपूर्ण ढंग से बात करने और विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने की क्षमता विकसित होती है।
    • भविष्य की तैयारी: वर्तमान की समझ भविष्य की चुनौतियों और अवसरों के लिए विद्यार्थियों को तैयार करती है।

उपयोग कैसे करें?

  • समाचार पत्रों/पत्रिकाओं के कतरनों का संग्रह।
  • कक्षा में 'करंट अफेयर्स टाइम' निर्धारित करना।
  • स्थानीय मुद्दों पर चर्चा या प्रोजेक्ट।
  • सामुदायिक सदस्यों को विशेषज्ञ के रूप में आमंत्रित करना।
  • स्थानीय स्थलों का शैक्षिक भ्रमण।

3.4 प्रयोगशाला, पुस्तकालय, संग्रहालय और प्रदर्शनी (Laboratory, Library, Museum and Exhibition)

ये सभी अधिगम को समृद्ध बनाने वाले महत्वपूर्ण अवसंरचनात्मक संसाधन हैं:

  1. सामाजिक विज्ञान प्रयोगशाला (Social Science Laboratory):

    • अवधारणा: यह केवल विज्ञान की प्रयोगशाला जैसी नहीं होती, बल्कि एक विशेष रूप से सुसज्जित कक्ष होती है जहाँ सामाजिक विज्ञान को सक्रिय और प्रायोगिक तरीके से पढ़ाया जा सके।
    • उपयोग:
      • मानचित्र कार्य, चार्ट, ग्राफ़, मॉडल (भू-आकृतियाँ, ऐतिहासिक इमारतें) बनाना और अध्ययन करना।
      • प्राथमिक स्रोतों (पुराने सिक्के, डाक टिकट, दस्तावेज़ों की प्रतियाँ) का अध्ययन।
      • सर्वेक्षण डेटा का विश्लेषण (कंप्यूटर/प्रोजेक्टर के माध्यम से)।
      • भूमिका निर्वाह, नाट्यीकरण, वाद-विवाद आयोजित करना।
      • ऑडियो-विजुअल सामग्री (डॉक्यूमेंट्री, ऐतिहासिक फुटेज) देखना और चर्चा करना।
    • महत्व: सैद्धांतिक ज्ञान को व्यावहारिक और मूर्त रूप देता है, अनुसंधानात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है, सहयोगी शिक्षण को सक्षम बनाता है।
  2. पुस्तकालय (Library):

    • अवधारणा: पुस्तकों, पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, संदर्भ ग्रंथों, डिजिटल संसाधनों का भंडार।
    • उपयोग:
      • विषय से संबंधित अतिरिक्त पठन सामग्री की खोज।
      • अनुसंधान करना, प्रोजेक्ट तैयार करना।
      • निबंध लेखन, रिपोर्ट तैयार करने में सहायता।
      • पढ़ने की आदत और स्वतंत्र अध्ययन को प्रोत्साहन।
      • करंट अफेयर्स के संसाधनों तक पहुँच।
    • महत्व: ज्ञान का विस्तार, गहन अध्ययन, स्वयं सीखने के कौशल का विकास, सूचना साक्षरता।
  3. संग्रहालय (Museum):

    • अवधारणा: ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक या कलात्मक महत्व की वस्तुओं का संग्रह, संरक्षण और प्रदर्शन करने वाला संस्थान।
    • उपयोग:
      • प्रत्यक्ष रूप से ऐतिहासिक कलाकृतियों, वेशभूषा, औज़ारों, जीवाश्मों, कला को देखना।
      • सांस्कृतिक विरासत और विकास क्रम को समझना।
      • विभिन्न कालखंडों और सभ्यताओं की झलक पाना।
      • प्रदर्शनियों के माध्यम से विशिष्ट विषयों का गहन अध्ययन।
    • महत्व: ठोस अनुभव, कल्पना शक्ति का विकास, अतीत की झलक, सांस्कृतिक समझ और सम्मान में वृद्धि।
  4. प्रदर्शनी (Exhibition):

    • अवधारणा: किसी विशेष विषय पर विद्यार्थियों, शिक्षकों या बाहरी एजेंसियों द्वारा तैयार की गई सामग्री (मॉडल, चार्ट, पोस्टर, पेंटिंग्स, क्राफ्ट, प्रोजेक्ट रिपोर्ट) का प्रदर्शन।
    • उपयोग:
      • विद्यार्थियों द्वारा सीखे गए ज्ञान का प्रदर्शन और साझाकरण।
      • रचनात्मकता और प्रस्तुति कौशल का विकास।
      • स्कूल या किसी विशेष दिवस (पर्यावरण दिवस, गणतंत्र दिवस) पर विषयवस्तु प्रस्तुत करना।
      • समुदाय को स्कूल की गतिविधियों से जोड़ना।
      • प्रतियोगिता और मान्यता का अवसर।
    • महत्व: सीखने का सार्वजनिक प्रदर्शन, आत्मविश्वास बढ़ाना, समुदाय को शामिल करना, विषय के प्रति रुचि पैदा करना।

3.5 ईवीएस और सामाजिक विज्ञान में इकाई योजना एवं पाठ योजना तथा टीएलएम का उपयोग (Unit Planning and Lesson Planning in EVS and Social Science with use of TLM)

  1. इकाई योजना (Unit Planning):

    • अवधारणा: एक बड़े विषय (जैसे "हमारा संविधान", "भारत की नदियाँ", "मानव अधिकार", "हमारा पर्यावरण") को छोटे, तार्किक और क्रमिक उप-विषयों (पाठों) में विभाजित करना और उस पूरी इकाई के लिए एक व्यापक योजना बनाना।
    • तत्व:
      • इकाई का शीर्षक: विषय का स्पष्ट नाम।
      • कक्षा स्तर: किस कक्षा के लिए है।
      • समय अवधि: इकाई पूरी करने में लगने वाला अनुमानित समय (जैसे 2 सप्ताह)।
      • उद्देश्य: इकाई पूरा करने पर विद्यार्थी क्या जानेंगे, समझेंगे और कर सकेंगे (ज्ञानात्मक, भावात्मक, क्रियात्मक उद्देश्य)।
      • विषय वस्तु विश्लेषण: मुख्य विषय और उसके उप-विषयों (पाठों) की सूची।
      • पूर्व ज्ञान: विद्यार्थियों के पास इस विषय से संबंधित क्या पहले से जानकारी होनी चाहिए।
      • शिक्षण विधियाँ: पूरी इकाई में प्रयोग की जाने वाली विभिन्न विधियाँ (जैसे व्याख्यान, चर्चा, प्रोजेक्ट, भ्रमण, स्रोत अध्ययन)।
      • टीएलएम (TLM - Teaching Learning Material): इकाई भर में उपयोग किए जाने वाले सभी शिक्षण सहायक सामग्री (मानचित्र, चार्ट, मॉडल, ऑडियो-विजुअल्स, प्राथमिक स्रोत, गतिविधि किट आदि)।
      • मूल्यांकन योजना: इकाई के दौरान और अंत में विद्यार्थियों के अधिगम का आकलन कैसे किया जाएगा? (प्रश्नोत्तरी, प्रोजेक्ट प्रस्तुति, चर्चा में योगदान, लिखित टेस्ट, रिपोर्ट, अवलोकन)।
      • सहसंबंध: अन्य विषयों या इकाइयों से कैसे जोड़ा जाएगा?
      • गृहकार्य/अनुवर्ती गतिविधियाँ: इकाई से जुड़े असाइनमेंट या एक्सटेंशन एक्टिविटीज।
  2. पाठ योजना (Lesson Planning):

    • अवधारणा: इकाई योजना के एक छोटे, विशिष्ट हिस्से (एक दिन या एक कालांश का पाठ) के लिए विस्तृत रूपरेखा तैयार करना। यह एक विशिष्ट उद्देश्य को प्राप्त करने पर केंद्रित होती है।
    • तत्व (सामान्य रूपरेखा):
      • विषय (Subject): सामाजिक विज्ञान / ईवीएस
      • उप-विषय (Topic): पाठ का विशिष्ट शीर्षक (जैसे: "भारत में लोकतंत्र के मुख्य स्तंभ")
      • कक्षा (Class): कक्षा स्तर
      • समय (Time/Duration): पाठ की अवधि (जैसे: 40 मिनट)
      • तिथि (Date):
      • सामान्य उद्देश्य (General Objectives): व्यापक लक्ष्य (इकाई योजना से लिए गए)।
      • विशिष्ट उद्देश्य (Specific Objectives/Learning Outcomes): इस विशेष पाठ के अंत में विद्यार्थी क्या करने में सक्षम होंगे? (जैसे: "लोकतंत्र के तीन मुख्य स्तंभों के नाम बता सकेंगे और उनके कार्यों की सूची बना सकेंगे")। ये SMART (Specific, Measurable, Achievable, Relevant, Time-bound) होने चाहिए।
      • पूर्व ज्ञान (Previous Knowledge): इस पाठ के लिए आवश्यक पूर्व ज्ञान और उसका परीक्षण करने का तरीका (जैसे: दो प्रश्न पूछकर)।
      • शिक्षण सहायक सामग्री (TLM): इस विशिष्ट पाठ में प्रयोग की जाने वाली सामग्री (जैसे: भारतीय संविधान की प्रस्तावना का चार्ट, विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका के कार्यों वाला फ्लोचार्ट, संबंधित तस्वीरें, वीडियो क्लिप)।
      • शिक्षण विधि (Method/Technique): इस पाठ को पढ़ाने के लिए प्रमुख विधि (जैसे: व्याख्या, चर्चा, प्रश्नोत्तर)।
      • पाठ योजना की प्रस्तुति (Presentation):
        • प्रस्तावना/पूर्व क्रियाएँ (Introduction): पाठ की शुरुआत (जिज्ञासा जगाना, पूर्व ज्ञान से जोड़ना, उद्देश्य बताना)।
        • विकास/प्रस्तुतीकरण (Development/Presentation): मुख्य विषयवस्तु की प्रस्तुति (विधि और TLM का उपयोग करते हुए चरणबद्ध तरीके से समझाना)। इसमें शिक्षक और विद्यार्थी दोनों की गतिविधियाँ शामिल होती हैं।
        • अभ्यास/अनुप्रयोग (Recapitulation/Application): सीखे हुए को दोहराना और लागू करना (प्रश्न पूछना, संक्षिप्त अभ्यास, चर्चा, उदाहरण देना)।
      • गृहकार्य (Home Assignment): पाठ से संबंधित सार्थक कार्य (जैसे: लोकतंत्र के तीनों स्तंभों के बारे में एक संक्षिप्त नोट बनाना, अखबार से उनसे संबंधित कोई समाचार ढूँढ़ना)।
      • मूल्यांकन (Evaluation): इस पाठ के विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति का आकलन कैसे किया गया? (अवलोकन, प्रश्नों के उत्तर, अभ्यास कार्य के माध्यम से)।
  3. टीएलएम का उपयोग (Use of TLM - Teaching Learning Material):

    • अवधारणा: शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी, रोचक और स्थायी बनाने के लिए प्रयुक्त सहायक सामग्री। ईवीएस और सामाजिक विज्ञान में TLM विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये अमूर्त अवधारणाओं को मूर्त रूप देते हैं।
    • प्रकार और उदाहरण:
      • दृश्य (Visual): मानचित्र (राजनीतिक, भौतिक, ऐतिहासिक), ग्लोब, चार्ट (फ्लोचार्ट, तुलना चार्ट, टाइमलाइन), ग्राफ, चित्र, पोस्टर, फ्लैशकार्ड, स्लाइड, प्रेजेंटेशन।
      • श्रव्य (Auditory): (ईवीएस/सामाजिक विज्ञान में कम, लेकिन जहाँ प्रासंगिक हो, जैसे ऐतिहासिक भाषण) - रिकॉर्डिंग, पॉडकास्ट।
      • श्रव्य-दृश्य (Audio-Visual): शैक्षिक वीडियो, डॉक्यूमेंट्री, फिल्म क्लिप, मल्टीमीडिया प्रेजेंटेशन।
      • वास्तविक वस्तुएँ (Real Objects/Realia): मिट्टी के नमूने, बीज, पुराने सिक्के, डाक टिकट, पारंपरिक वस्त्र, उपकरण।
      • मॉडल (Models): 3D मॉडल (सौर मंडल, भू-आकृतियाँ, ऐतिहासिक इमारतें), कार्यकारी मॉडल (जल चक्र)।
      • स्पर्शनीय सामग्री (Tactile Materials): राहत मानचित्र, बनावट वाले कार्ड।
      • डिजिटल संसाधन: शैक्षिक वेबसाइट्स, ऑनलाइन सिमुलेशन, वर्चुअल फील्ड ट्रिप्स, इंटरैक्टिव मैप्स।
    • टीएलएम के चयन और उपयोग के सिद्धांत:
      • उद्देश्यपूर्ण: TLM शिक्षण उद्देश्य के अनुरूप हो।
      • उपयुक्तता: विद्यार्थी के आयु स्तर, विषयवस्तु और सीखने की शैली के लिए उपयुक्त हो।
      • आकर्षक एवं स्पष्ट: रंगीन, बड़े, स्पष्ट और अच्छी तरह से डिज़ाइन किए गए हों।
      • सादगी: जटिल जानकारी को सरल बनाने में मदद करें।
      • पहुँच योग्य: विशेष रूप से बधिर छात्रों के लिए दृश्य और स्पर्शनीय रूप से सुलभ हों (जैसे कैप्शन वाले वीडियो, संकेत भाषा के साथ प्रस्तुत सामग्री)।
      • मितव्ययी: जहाँ संभव हो, स्थानीय और कम लागत वाली सामग्री का उपयोग करें।
      • उपयोग में सहज: शिक्षक और छात्र दोनों आसानी से उपयोग कर सकें।
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