कक्षा 10 भूगोल: अध्याय 6 - विनिर्माण उद्योग

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कक्षा 10 भूगोल: अध्याय 6 - विनिर्माण उद्योग



1. विनिर्माण का महत्व

विनिर्माण उद्योग निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण हैं:

  • कृषि का आधुनिकीकरण: विनिर्माण उद्योग कृषि को आधुनिक बनाने में मदद करते हैं क्योंकि वे कृषि के लिए विभिन्न उपकरण और मशीनें (जैसे ट्रैक्टर, उर्वरक, कीटनाशक) प्रदान करते हैं।
  • रोजगार सृजन: ये उद्योग द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा करते हैं, जिससे कृषि पर निर्भरता कम होती है और बेरोजगारी तथा गरीबी दूर होती है।
  • व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा: निर्मित वस्तुओं का निर्यात व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देता है, जिससे देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
  • आर्थिक समृद्धि: वे देश जो बड़े पैमाने पर विनिर्माण करते हैं, वे अधिक समृद्ध होते हैं क्योंकि वे अपने कच्चे माल को अधिक मूल्यवान उत्पादों में बदलते हैं।
  • क्षेत्रीय असमानताओं में कमी: उद्योगों की स्थापना पिछड़े क्षेत्रों में रोजगार पैदा करती है और क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने में मदद करती है।

राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योग का योगदान:

पिछले एक दशक में, विनिर्माण क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 17% योगदान रहा है। कुल GDP में उद्योग का योगदान 27% है, जिसमें से 10% खनन, उत्खनन, बिजली और गैस से आता है। भारत का लक्ष्य इस क्षेत्र में और वृद्धि करना है ताकि 2025 तक विनिर्माण क्षेत्र का योगदान 25% तक बढ़ाया जा सके।

2. औद्योगिक अवस्थिति (Industrial Location)

उद्योगों की अवस्थिति कई कारकों से प्रभावित होती है। किसी उद्योग की स्थापना के लिए सबसे उपयुक्त स्थान वह होता है जहाँ उत्पादन लागत न्यूनतम हो।

औद्योगिक अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक:

  • कच्चे माल की उपलब्धता: उद्योग अक्सर उन क्षेत्रों में स्थापित किए जाते हैं जहाँ कच्चा माल आसानी से और कम लागत पर उपलब्ध होता है (जैसे इस्पात उद्योग)।
  • श्रम की उपलब्धता: कुशल और अकुशल श्रम की पर्याप्त आपूर्ति।
  • पूंजी: निवेश के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन।
  • शक्ति (Power): बिजली की निरंतर और पर्याप्त आपूर्ति।
  • बाजार: निर्मित वस्तुओं को बेचने के लिए निकटवर्ती बाजार की उपलब्धता।
  • परिवहन और संचार: कच्चे माल को लाने और तैयार माल को बाजार तक पहुंचाने के लिए कुशल परिवहन (सड़क, रेल) और संचार सुविधाएं।
  • सरकारी नीतियां: सरकार की नीतियां, जैसे सब्सिडी, कर प्रोत्साहन आदि भी उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करती हैं।

शहरों और उद्योगों के बीच संबंध:

शहर उद्योगों को बाजार और सेवाएं (जैसे बैंकिंग, बीमा, परिवहन, श्रम, वित्तीय सलाह आदि) प्रदान करते हैं। कई उद्योग एक साथ मिलकर शहरी केंद्रों के पास 'समुच्चय अर्थव्यवस्थाओं' (agglomeration economies) का लाभ उठाते हैं, जिससे बड़े औद्योगिक समूह विकसित होते हैं।

3. उद्योगों का वर्गीकरण

उद्योगों को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है:

A. कच्चे माल के स्रोत के आधार पर:

  • कृषि आधारित उद्योग: वे उद्योग जो अपने कच्चे माल के लिए कृषि उत्पादों पर निर्भर करते हैं।
    उदाहरण: सूती वस्त्र उद्योग, पटसन उद्योग, चीनी उद्योग, वनस्पति तेल उद्योग।
  • खनिज आधारित उद्योग: वे उद्योग जो अपने कच्चे माल के लिए खनिजों पर निर्भर करते हैं।
    उदाहरण: लौह-इस्पात उद्योग, सीमेंट उद्योग, एल्यूमीनियम प्रगलन उद्योग, रासायनिक उद्योग।

B. मुख्य भूमिका के आधार पर:

  • आधारभूत उद्योग (Basic/Key Industries): वे उद्योग जो अन्य उद्योगों के लिए कच्चे माल या उत्पाद बनाते हैं।
    उदाहरण: लौह-इस्पात उद्योग, तांबा प्रगलन, एल्यूमीनियम प्रगलन।
  • उपभोक्ता उद्योग (Consumer Industries): वे उद्योग जो सीधे उपभोक्ताओं के उपयोग के लिए उत्पाद बनाते हैं।
    उदाहरण: चीनी, दंतमंजन, कागज, पंखे, सिलाई मशीनें।

C. पूंजी निवेश के आधार पर:

  • लघु उद्योग (Small Scale Industries): वे उद्योग जिनमें अधिकतम निवेश सीमा (समय-समय पर सरकार द्वारा संशोधित) 1 करोड़ रुपये तक होती है।
  • बृहत् उद्योग (Large Scale Industries): वे उद्योग जिनमें 1 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश होता है।

D. स्वामित्व के आधार पर:

  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग (Public Sector Industries): इनका स्वामित्व और संचालन सरकार द्वारा किया जाता है।
    उदाहरण: भेल (BHEL), सेल (SAIL)।
  • निजी क्षेत्र के उद्योग (Private Sector Industries): इनका स्वामित्व और संचालन व्यक्तियों या कंपनियों के समूह द्वारा किया जाता है।
    उदाहरण: टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (TISCO), रिलायंस इंडस्ट्रीज।
  • संयुक्त क्षेत्र के उद्योग (Joint Sector Industries): इनका स्वामित्व और संचालन सरकार और निजी व्यक्तियों/कंपनियों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है।
    उदाहरण: ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL)।
  • सहकारी उद्योग (Co-operative Sector Industries): इनका स्वामित्व और संचालन कच्चे माल के उत्पादकों या आपूर्तिकर्ताओं, श्रमिकों या दोनों द्वारा किया जाता है। लाभ या हानि का वितरण आनुपातिक होता है।
    उदाहरण: महाराष्ट्र के चीनी उद्योग, केरल के नारियल आधारित उद्योग।

4. कृषि आधारित उद्योग

A. वस्त्र उद्योग:

यह भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे महत्वपूर्ण उद्योगों में से एक है। यह एकमात्र ऐसा उद्योग है जो कच्चे माल से लेकर उच्चतम अतिरिक्त मूल्य वाले उत्पादों तक की श्रृंखला में आत्मनिर्भर और पूर्ण है।

सूती वस्त्र उद्योग:

  • प्राचीन भारत: हाथ से कताई और हथकरघे से बुनाई।
  • 18वीं सदी: बिजली के करघों का उपयोग शुरू हुआ।
  • स्थान: महाराष्ट्र और गुजरात के कपास उगाने वाले क्षेत्रों के करीब स्थित है क्योंकि कच्चा माल आसानी से उपलब्ध है, बाजार है, परिवहन (पत्तन) है, नम जलवायु है।
  • महत्व: यह उद्योग कृषि से जुड़ा हुआ है और कपास उत्पादकों, गांठ बनाने वाले, कताई करने वाले, बुनकरों, रंगाई करने वालों, डिजाइनरों और पैकेजिंग करने वालों सहित बड़ी संख्या में लोगों को आजीविका प्रदान करता है। यह रसायन, रंगाई, पैकेजिंग सामग्री और इंजीनियरिंग कार्यों जैसे कई अन्य उद्योगों का भी समर्थन करता है।
  • चुनौतियां: पुरानी मशीनरी, अनियमित बिजली आपूर्ति, निम्न श्रम उत्पादकता, सिंथेटिक फाइबर उद्योगों से प्रतिस्पर्धा।

पटसन उद्योग (जूट):

  • भारत पटसन के सामान का सबसे बड़ा उत्पादक है और बांग्लादेश के बाद दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है।
  • स्थान: हुगली बेसिन (पश्चिम बंगाल) में केंद्रित है। इसके कारण: पटसन उत्पादक क्षेत्रों की निकटता, सस्ता जल परिवहन, सड़क और रेल नेटवर्क, प्रचुर मात्रा में पानी और सस्ता श्रम।
  • चुनौतियां: अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सिंथेटिक पैकेजिंग सामग्री से प्रतिस्पर्धा, बांग्लादेश, ब्राजील, फिलीपींस, मिस्र और थाईलैंड जैसे अन्य देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा।
  • सरकारी नीति: पटसन उद्योग की मांग बढ़ाने के लिए सरकार ने 2005 में 'राष्ट्रीय पटसन नीति' तैयार की, जिसमें पटसन के उत्पादकों को समर्थन देने और विविधता लाने पर जोर दिया गया।

चीनी उद्योग:

  • भारत दुनिया में चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • स्थान: गन्ना भारी और नाशवान कच्चा माल है। इसलिए, मिलें गन्ना उत्पादक क्षेत्रों के करीब होनी चाहिए।
  • वितरण: उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब, हरियाणा।
  • शिफ्टिंग: हाल के वर्षों में दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में चीनी मिलों की संख्या बढ़ रही है। इसके कारण: इन राज्यों में गन्ने की अधिक सुक्रोज सामग्री, लंबी पेराई अवधि, और सहकारी समितियों की सफलता।
  • चुनौतियां: मौसमी प्रकृति, पुरानी और अक्षम उत्पादन विधियाँ, परिवहन में देरी, खोई का अधिकतम उपयोग न कर पाना।

5. खनिज आधारित उद्योग

A. लौह-इस्पात उद्योग (Iron and Steel Industry):

यह एक आधारभूत उद्योग है, क्योंकि अन्य सभी विनिर्माण उद्योग (भारी, मध्यम या हल्के) अपने मशीनरी के लिए इस्पात पर निर्भर करते हैं।

  • कच्चा माल: लौह अयस्क, कोकिंग कोयला, चूना पत्थर (4:2:1 के अनुपात में), मैंगनीज।
  • प्रक्रिया: लौह अयस्क से इस्पात बनाने की प्रक्रिया जटिल है और इसमें कई चरण शामिल हैं: कच्चे माल को ब्लास्ट फर्नेस में पिघलाना, पिघले हुए लोहे को साफ करना, मैंगनीज और क्रोमियम जैसे अन्य धातुओं को मिलाकर मिश्र धातु इस्पात बनाना, और फिर इसे रोलिंग मिलों में वांछित आकार देना।
  • स्थान: अधिकांश इस्पात संयंत्र छोटानागपुर पठारी क्षेत्र में स्थित हैं। इसके कारण: लौह अयस्क, उच्च श्रेणी के कोकिंग कोयले और अन्य खनिजों की कम लागत पर उपलब्धता, सस्ते श्रम की उपलब्धता, परिवहन नेटवर्क और बाजार।
  • वितरण: जमशेदपुर, बोकारो, दुर्गापुर, राहुलकेला, भिलाई (एकीकृत इस्पात संयंत्र)।
  • चुनौतियां: उच्च उत्पादन लागत, कोकिंग कोयले की सीमित उपलब्धता, निम्न श्रम उत्पादकता, अनियमित ऊर्जा आपूर्ति, निम्न बुनियादी ढांचा।

B. एल्यूमीनियम प्रगलन (Aluminium Smelting):

यह दूसरा सबसे महत्वपूर्ण धातु कर्म उद्योग है।

  • उपयोग: एल्यूमीनियम हल्का, जंग प्रतिरोधी, ऊष्मा का अच्छा चालक, लचीला और अन्य धातुओं के साथ आसानी से मिश्रित होने वाला होता है। इसका उपयोग विमानों, बर्तनों और तारों के निर्माण में होता है।
  • कच्चा माल: बॉक्साइट।
  • स्थान: बॉक्साइट भारी, गहरा और थोक कच्चा माल है, इसलिए एल्यूमीनियम प्रगलन संयंत्र बॉक्साइट के स्रोत और बिजली की नियमित आपूर्ति के करीब स्थापित किए जाते हैं।
  • वितरण: ओडिशा, पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और तमिलनाडु।

C. रासायनिक उद्योग (Chemical Industry):

भारत का रासायनिक उद्योग तेजी से बढ़ रहा है और विविधतापूर्ण है। यह एशिया में तीसरे और दुनिया में 12वें स्थान पर है।

  • प्रकार:
    • कार्बनिक रसायन: पेट्रोकेमिकल्स (सिंथेटिक फाइबर, प्लास्टिक, रबर आदि के लिए उपयोग)।
    • अकार्बनिक रसायन: सल्फ्यूरिक एसिड (उर्वरक, सिंथेटिक फाइबर, प्लास्टिक आदि के लिए), नाइट्रिक एसिड, क्षार (कांच, साबुन, डिटर्जेंट आदि के लिए)।
  • स्थान: पूरे देश में वितरित हैं, क्योंकि ये उद्योग अपने कच्चे माल के लिए एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं।

D. उर्वरक उद्योग (Fertilizer Industry):

यह उद्योग नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों (यूरिया), फॉस्फेटिक उर्वरकों और मिश्रित उर्वरकों (नाइट्रोजन, फॉस्फेट और पोटाश) के उत्पादन पर केंद्रित है।

  • कच्चा माल: प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम, नेफ्था।
  • स्थान: गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पंजाब, केरल आदि में स्थित हैं। गुजरात में कलोल, हजीरा आदि प्रमुख केंद्र हैं।

E. सीमेंट उद्योग (Cement Industry):

निर्माण गतिविधियों (जैसे घर, कारखाने, पुल, सड़कें आदि) के लिए आवश्यक।

  • कच्चा माल: चूना पत्थर, सिलिका, एल्यूमिना और जिप्सम।
  • स्थान: भारी और थोक कच्चे माल के कारण, यह उद्योग कच्चे माल के स्रोतों के करीब स्थित है।
  • वितरण: गुजरात में सबसे अधिक इकाइयाँ हैं क्योंकि खाड़ी देशों के बाजारों तक पहुंच आसान है। अन्य राज्य: राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु।

F. ऑटोमोबाइल उद्योग (Automobile Industry):

वाहनों (ट्रक, बसें, कारें, मोटरसाइकिलें आदि) का उत्पादन करता है।

  • विकास: उदारीकरण के बाद, नए और आधुनिक मॉडल बाजार में आए, जिससे मांग में वृद्धि हुई।
  • स्थान: दिल्ली, गुरुग्राम, मुंबई, पुणे, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ और इंदौर के आसपास केंद्रित है।

G. सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग (Information Technology and Electronics Industry):

इलेक्ट्रॉनिक सामान (टेलीविजन, टेलीफोन, कंप्यूटर आदि) बनाता है।

  • बैंगलोर: भारत की इलेक्ट्रॉनिक राजधानी के रूप में जाना जाता है।
  • अन्य केंद्र: मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, कोलकाता, लखनऊ और कोयंबटूर।
  • सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क (STPs): ये उच्च डेटा संचार सुविधाओं वाले केंद्र हैं, जो सॉफ्टवेयर विशेषज्ञों को एकल खिड़की सेवा प्रदान करते हैं। यह भारतीय अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख विदेशी मुद्रा अर्जक बन गया है।

6. औद्योगिक प्रदूषण और पर्यावरणीय क्षरण

उद्योग अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन ये पर्यावरण को भी प्रदूषित करते हैं। प्रदूषण के मुख्य प्रकार हैं:

  • वायु प्रदूषण: धुएं, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे हानिकारक गैसों का उत्सर्जन।
  • जल प्रदूषण: उद्योगों द्वारा बिना उपचारित गर्म पानी और अपशिष्टों को नदियों और जलाशयों में छोड़ना।
  • भूमि प्रदूषण: ठोस अपशिष्टों का अनुचित निपटान, मिट्टी का अम्लीय या क्षारीय होना।
  • ध्वनि प्रदूषण: औद्योगिक और निर्माण गतिविधियों से उच्च स्तर का शोर, जो मानसिक तनाव, उच्च रक्तचाप आदि का कारण बनता है।
  • तापीय प्रदूषण: परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और ताप विद्युत संयंत्रों से गर्म पानी का नदियों में छोड़ना।

पर्यावरणीय क्षरण को नियंत्रित करने के उपाय:

  • जल का न्यूनतम उपयोग: विभिन्न प्रक्रियाओं में जल का न्यूनतम उपयोग और जल का दो या अधिक उत्तरोत्तर अवस्थाओं में पुनर्चक्रण द्वारा पुनः उपयोग।
  • वर्षा जल संग्रहण: औद्योगिक उद्देश्यों के लिए जल की आवश्यकता को पूरा करने के लिए वर्षा जल का संग्रहण।
  • अपशिष्टों का उपचार: नदियों और तालाबों में गर्म जल और अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने से पहले उनका शोधन करना।
  • धुएं के ढेर की ऊंचाई बढ़ाना: कारखानों में धुएं के ढेर की ऊंचाई बढ़ाना ताकि प्रदूषण कम हो।
  • ईंधन के रूप में गैस का उपयोग: तेल के बजाय गैस का उपयोग करना (जैसे सीएनजी)।
  • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा: सौर, पवन और जलविद्युत ऊर्जा का उपयोग।
  • ध्वनि प्रदूषण कम करना: जेनरेटरों पर साइलेंसर लगाना, शोर-शराबे वाले उद्योगों में मशीनों को फिर से डिजाइन करना, और श्रमिकों के लिए कान के प्लग का उपयोग करना।

यह नोट्स अध्याय "विनिर्माण उद्योग" के मुख्य बिंदुओं को कवर करते हैं।

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